की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। संपर्क करी मो०/ वाट्सएप न० +91 92124 61006

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

गजल

डूबने बिनु बुझब कोना निशा की छै
प्रेम बिनु केने कि जानब सजा की छै

बसि क’ धारक कात हेलब सिखब कोना
आउ देखी कूदि एकर मजा की छै

नोकरी कय नै कियो धन कमेलक बड़
अपन मालिक बनु तँ एहिसँ भला की छै

आइ अप्पन बलसँ पीएम बनतै ओ
हारि झूठ्ठे ढोल पीटब हबा की छै

रोडपर कोनो करेजक परल टुकड़ा
ओहि छनमे ‘मनु’सँ पुछबै दया की छै 

(बहरे कलीब, मात्रा क्रम, २१२२-२१२२-१२२२)
जगदानन्द झा 'मनु'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें