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शनिवार, 29 सितंबर 2012

शंकल्पक धनी विल्मा रुडोंल्फ


बिल्मा रुडोंल्फक जन्म तेनेसेस शहरकेँ एक गोट गरीब परिवारमे भएलैंह | चारि बरखक अबस्थामे डबल निमोनियाँ आओर कालाजारक प्रकोपक संगे-संगे ओ पोलियोसँ ग्रस्त भs गेलिह | ओ अपन दुनू पएरकेँ सहारा देबैक लेल ब्रैस पहिरैत छलिह | डाक्टर  तँ  एते तक कहि देलकैन्ह जे ओ जीवन भरि अपन पएर सँ चलि फिर नहि सकतिह, मुदा हुनकर माए हुनका हिम्मत बढ़ेलखिन्ह आ कहलखिन्ह -"दृढ़ शंकल्प, लगन,  कठिन मेहनत सँ जे कोनो काज कएल जाए भगवान ओकरा अवश्य पूरा करैत छथिन्ह |'' इ गप्प सुनि विल्मा निश्चय कएलैन्ह जे ओ दुनियाँकेँ सभसँ तेज धाविका बनतिह |
नअ बरखक अबस्थामे डाक्टरक मना कएला बादो ओ  अपन पएरक ब्रैस उतारि कs अपन पहील डेग जमीनपर बढ़ेलीह | १३ बरखक अबस्थामे अपन पहील दौड़ प्रतियोगतामे भाग लेलैन्ह आ सभसँ पाछू रहलीह | ओकर बाद दोसर, तेसर, चारिम, पाँचम प्रतियोगता सभमे भाग लैत रहलीह आओर सभसँ अन्तिम स्थानपर आबैत रहलीह | आ इ प्रयास ताबत तक रहलैन्ह जाबत कि ओ दिन नहि आबि गएल जहिया ओ प्रथम एलीह
१५ बरखक अबस्थामे विल्मा टेनिसी स्टेट यूनिवर्सिटी गएलीह, जाहि ठाम हुनक भेट एडटेम्पल नामक एकटा कोचसँ भेलैन्ह | हुनका ओ अपन मोनक इच्छा बतेलीह, जे ओ दुनियाँकेँ सभसँ तेज धाबिका बनऐ चाहैत छथि | हुनक दृढ़  इच्छा शक्तिकेँ देखैत टेम्पल हुनक कोच बनब स्वीकार कएलैन्ह |
अंतमे ओ शुभ दिन आएल जहिया विल्मा ओलम्पिकमे भाग लs रहल छलीह | ओलम्पिकमे दुनियाँकेँ सभसँ तेज दौड़ए बला सभसँ मुकाबला रहैत छैक | विल्माक मुकाबला जुताहैनसँ छलैन्ह जिनका कियो नहि हरा पएने छल |  पहील दौड़ १०० मीटरकेँ छल जाहिमे बिल्मा जुताहैन केँ हरा कs पहील स्वर्णपदक जितलीह | दोसर दौड़ २०० मीटरकेँ एहुमे विल्मा, जूताकेँ दोसर बेर हराकए अपन दोसर स्वर्णपदक जितलीह | तेसर आ अन्तिम दौड़ ४०० मीटर रिले रेस छल आ विल्माक सामना एकबेर फेरसँ जुतासँ छलैन्ह | एहि अन्तिम आ निर्णायक दौड़मे टीमक सभसँ तेज धाबिकाकेँ बिच सामना छल | दुनू टीमसँ चारि चारिटा सर्बश्रेष्ठ धाविका, करू अथवा मरुक मुकाबला | विल्माक टीमकेँ तीनटा धाविका  रिले रेसकेँ  शुरूआती  तिन हिस्सामे दौड़लीह अ आसानीसँ बेटन बदललीह | जखन विल्माकेँ दौड़क बेर एलैन्ह तँ हुनकासँ बेटन छूटि गएलैन्ह मुदा ओ अपनाकेँ सम्हारैत, खसल बेटन शिर्घतासँ उठाबैत मशीन जकाँ  तेजीसँ दौडैत जुताकेँ तेसरो बेर हरा कs तेसर गोल्ड मेडलक संगे-संगे दुनियाँकेँ नम्बरएक धाविका बनि अपन सपना पूरा करैत इतिहासक पन्नामे अपन नाम स्वर्ण अक्षरसँ  लिखेलथि |
ई अमीट इतिहास १९६० कए ओलम्पिककेँ अछि जाहिमे एकटा लकबाग्रस्त महिला दुनियाकेँ  सर्वश्रेष्ठ धाविका बनल छली | एहेन सफल व्यक्तिक खिस्सासँ अपनों सभकेँ मोनमे सफलता प्राप्तिक लालसा अबस्य जागल होएत | कठिनाई सफलताक पहील सीढ़ी छैक,   दृढ़ शंकल्प आ विश्वासक संग डेग आगु  तँ बढ़ाऊ सफलता अहाँक चरण चूमत |


शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

प्रोग्रेसिभ


                              शर्माजी आ हुनकर कनियाँ पूरा समाजमे प्रोग्रेसिभ कहाबैत छलथि। एकर कारण ई छल जे दूटा बेटीक जन्मक उपरान्त शर्माजी बिना बेटाक लालसा केने फैमिली पलानिंगक आपरेशन करा लेने छलाह आ दूनू बेकती बेटी सभक लालन पालनमे कोनो कसरि नै छोडने छलखिन्ह। बेटी सबकेँ पढेबा लिखेबामे पूरा धेआन देने छलखिन्ह आ ओकरा सभकेँ तमाम सुख सुविधा देबामे पाँछा नै रहैत छलखिन्ह। समाजमे शर्माजी दूनू बेकती बहुत आदरणीय आ उदाहरण छलथि। बेटी सभकेँ आ शर्माजीक कनियाँकेँ कोनो दिक्कत नै होई, ऐ लेल शर्माजी किछो करबा लेल तैयार रहैत छलाह। घरक काजमे मदतिक लेल एकटा दाई राखल गेल छल जे चौबीसो घण्टा हुनकर घरे पर रहैत छलैन्हि। ओकर नाँउ छलै मीतू आ ओ बयसमे बारह-तेरह बरखक छल। ऐ हिसाबेँ ओ एखन बच्चे छलै आ पेटक मजबूरीमे हुनकर घरमे काज करबा लेल बाध्य छलै। घरक पूरा साफ सफाई, पोछा, बासन माँजनाई आ कपडा धोनाई ओकरे जिम्मा छलै। दिन भरि खटिकऽ ओ थाकि जाईत छल आ साँझुक बाद झपकी लेबऽ लागैत छल। जखने ओकरा झपकी आबै की मलकिनीक प्रवचन ओकर निन्न तोडि दैत छलै। रातिमे सभक खएलाक उपरान्त ओ सभटा बासन माँजि लैत छलै आ तकर बादे खाई लेल बैसै छलै। खएबामे सबहक बचल खुचल ओकरा नसीब होईत छलै।

                              शर्माजी अपन बेटी सभक सब फरमाईश पूरा करैत छलखिन्ह आ कोनो वस्तुक माँग भेला पर बाजारसँ तुरंत ओ वस्तु आनैत छलथि, चाहे ओ कोनो खेलौनाक फरमाईश होई वा कोनो भोज्य सामग्रीक। जँ कखनो मीतू बाल सुलभ लालसामे ओइ वस्तु सभ दिस ताकियो दैत छलै की शर्माजीक कनियाँ अनघोल उठा दैत छलखिन्ह जे आब हमर बेटी सभकेँ ई वस्तु सब नै पचतै, देखू कोना नजरि लगा देलक ई निराशी। एकर अलावे आरो ढेरी गपक प्रसाद मीतूकेँ भेंट जाईत छलै, तैं बेचारी ऐ सब फरमाईशी वस्तु दिस धेआन नै देबाक प्रयास करैत छल, मुदा बच्चे छलै तैँ कखनो कालकेँ गलती भइये जाईत छलै।

                              एकदिन शर्माजीक बडकी बेटी गुलाबजामुनक फरमाईश केलकै। शर्माजी साँझमे घर आबैत काल बीसटा गुलाबजामुन सबसँ नीक मधुरक दोकानसँ कीनिकऽ नेने अएलाह। पहिने तँ दूनू बेटी आ हुनकर कनियाँ दू-दूटा गुलाबजामुनक भोग लगेलखिन्ह आ तकर बाद बचलाहा मधुरकेँ फ्रिजमे राखि देल गेलै। मीतू कुवाचक डरे ऐ मधुर दिस ताकबो नै केलक आ नै ओकरा खएबा लेल भेंटलै। मुदा मधुरक सुगंध ओकरा बेर-बेर अपना दिस आकर्षित करऽ लागलै। ओ एकटा योजना मोने मोन बनेलक आ चुपचाप घरक काज करऽ लागल। रातिमे भोजन कएलाक उपरान्त शर्माजीक कनियाँ ओकरासँ बासन मँजबेलखिन्ह आ एकर बाद ओकरा खएबा लेल बचलाहा सोहारी आ तरकारी दैत ई ताकीद केलखिन्ह जे हम सुतै लेल जाई छियौ, तूँ खा कऽ अपन छिपली माँजि सुतै लए जइहैं। ओ स्वीकृतिमे अपन मुडी हिलेलक आ खएबा लेल बैसि गेल। शर्माजीक कनियाँ तकर बाद सुतै लए चलि गेलीह। आब मीतू मधुर खएबाक अपन योजना पर काज शुरू केलक। पहिने तँ जल्दीसँ सोहारी तरकारी समाप्त कएलक आ तकर बाद नहुँ नहुँ डेगे फ्रिज दिस बढल। एकदम स्थिरसँ ओ फ्रिजक फाटक खोललक आ फ्रिजसँ मधुरक पैकेट निकालि कऽ एकटा गुलाबजामुन मुँहमे राखलक। फेर ओ सोचऽ लागल जे जखन एकटा खाइये लेलौं तखन एकटा आर खा लेबामे कोनो हर्ज नै छै। तैँ ओ एकटा आर गुलाबजामुन निकालि मुँहमे धरिते छल की पाँछासँ शर्माजीक कनियाँ ओकर केश पकडि घीचि लेलखिन्ह। असलमे खटपटक आवाज सुनि हुनकर निन्न टूटि गेल छलैन्हि। आब तँ मीतूक जे हाल भेलै से जूनि पूछू। मुँहमे गुलाबजामुन ठूँसल छलै तैँ ओ गोंगिया लागल। शर्माजीक कनियाँ ओकरा पर थापड आ लातक बौछार कए देलखिन्ह। संगे अपशब्दक नब महाकाव्यक रचना सेहो करैत पूरा घरकेँ जगा देलखिन्ह। सब मिलिकऽ मीतूक अपशब्द आ थापडक खोराक दए गेलखिन्ह। जखन ओ सब गारिक पूरा शब्दकोश पढि गेलखिन्ह आ मारैत हाथ दुखाबऽ लागलैन्हि तखन ओ सब हँपसैत ठाढ भऽ गेलथि। शर्माजीक कनियाँ मीतूक झोंटा घीचैत कहलखिन्ह जे हम सब प्रोग्रेसिभ छी, तैं छोडि देलियौ नै तँ आन रहितौ ने तँ बलि चढेने बिना नै छोडितौ। ई कहि ओ सब अपन बेडरूम दिस विदा भेलथि आ मीतू कानैत अपन बोरा लेने ओसारा दिस सुतै लेल बढि गेल।

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

गजल


अपन छाहरिक डरसँ सदिखन पडाईत रहलौं
पता नै किया खूब हम छटपटाईत रहलौं

कियो नै सुनै गप करेजक हमर आब एतय
करेजक कहै लेल गप हडबडाईत रहलौं

अपस्याँत छी जे चिन्हा जाइ नै भीडमे हम
मनुक्खक डरे दोगमे हम नुकाईत रहलौं

अपन पीठ अपने थपथपा मजा लैत छी हम
बजा अपन थपडी सगर ओंघराईत रहलौं

कतौ भेंटलै नै सुखक बाट "ओम"क नगरमे
सुखक खोजमे बाटमे ढनमनाईत रहलौं

बहरे-मुतकारिब

रविवार, 23 सितंबर 2012

फुसियाँहिक झगड़ा (हास्य कविता)



जतैए देखू ततैए देखब झगड़ा

बेमतलबो के होइए रगरम-रगड़ा

जातिवाद त कियो क्षेत्रवाद के नाम पर

लोक करै फुसियाँहिक झगड़ा।



चुनावी पिपही बजैते मातर

की गाम घर, आ की शहर-बज़ार

एहि सँ किछु होना ने जोना

मुदा लोक करै फुसियाँहिक झगड़ा।



फरिछा लेब, हम ई त तूं ओ

हम एहि ठामहक तूं ओई ठामहक

एक्के देशवासी रहितहु हाई रे मनुक्ख

लोक करे फुसियाँहिक झगड़ा।



अपने देश मे एक प्रांतक लोक

दोसर प्रांतक लोक के घुसपैठी कहि

खूम राजनीतिक वाहवाही लूटैए

दंगा-फसाद, आ कि-की ने करैए।



नेता सबहक करनामा देखू

ओ करैथ वोट बैंक पॉलिसी के नखरा

हुनके उकसेला पर भेल धमगिज्जर

आ लोक केलक फुसियाँहिक झगड़ा।



लोक भेल अछि अगिया बेताल

नेता नाचए अपने ताल

कछमछि धेलक चुप किएक बैसब

आऊ-आऊ बझहाउ कोनो झगड़ा।



जातिवाद के नाम पर वोट बटोरू

दंगा-फसादक मौका जुनि छोड़ू

अपना स्वार्थ दुआरे भेल छी हरान

क्षेत्रवादक आगि पर अहाँ अप्पन रोटी सेकू।



की बाबरी आ की गोधरा कांड

बेमतलब के भेल नरसंहार

कतेक मरि गेल, कतेको खबरि नहि

मुदा एखनो बझहल अछि सियासी झगड़ा।



देश समाज जाए भांड़ मे

नेता जी के कोन छनि बेगरता

जनता के बेकूफ बनाउ

हो हल्ला आ कराऊ कोनो झगड़ा।


शनिवार, 22 सितंबर 2012

गजल


अनकोसँ सम्बन्ध जोड़ाबै छै पाइ
छोटकाकेँ बड्डका बनाबै छै पाइ 

फूसियो बिकाइ छै मोलेमे आइ तँ  
सतकेँ सभतरि नुकाबै छै पाइ

ज्ञानक कनिको मोले नहि रहल  
प्रवचन सभटा सुनाबै छै पाइ 

नहि माए बाबू नहि भाइ बहिन
दुनियाँमे सभकेँ कनाबै छै पाइ 

चिन्हार नै अनचिन्हार एहिठाम 
'मनु' आइ सभकेँ हँसाबै छै पाइ 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१३)    


शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

बाल गजल

बाल गजल-55

खीर पूरी खाइ बौआ
सेब लेने जाइ बौआ

छोट सन छै पेट कसमस
नाप लै गोलाइ बौआ

गेन लेने चारि नेना
संग खेलै दाइ बौआ

देख कारी कुकुर घरमे
डरसँ बड चिचियाइ बौआ

बेँग कूदै माँझ आँगन
दाबि मुँह ठिठियाइ बौआ

हँसि नुकेलै दोगमे ओ
खाट तऽर देखाइ बौआ

काज सबटा करत झटपट
आब नै अलसाइ बौआ

फाइलातुन
2122 दू बेर सब पाँतिमे
बहरे-रमल

अमित मिश्र

गजल


सभकियो दुनियाँमे किएक आँखि चोराबै छैक  
माँगि नहि लिए कियो तेँ सभकिछु नुकाबै छैक  

गरीबी भेलैक बहुते केहन ई व्यबस्था छैक 
गरीबी नहि सरकार गरीबेकेँ मेटाबै छैक 

साउस भेली सरदार गलती नहि हुनकर 
जतए ततए किएक पुतोहुकेँ जड़ाबै छैक 

जतेक दर्द बेटामे  बेटीयोमे ओतबे सभकेँ 
बेटा बिकाइ किएक बेटीकेँ सभ हटाबै छैक 

दुनियाँक रीत  एहन 'मनु'केँ नै सोहाइ छैक 
रहए जे खोपड़ीमे सभक घर बनाबै  छैक  

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१८)     

गजल


रहब आब नै दास बनि हम 
अपन नीक इतिहास जनि हम 

जखन ठानलहुँ हम अपनपर 
समुद्रो लएलहुँ तँ सनि हम 

उठा मांथ जतएसँ तकलहुँ 
दएलहुँ  तँ नक्षत्र गनि हम 

हलाहल दुनीयाँक पीने
चलै छी अपन मोन तनि हम 

जमल खून मारलक धधरा 
लएलहुँ विजय विश्व ठनि  हम

(बहरे मुतकारिब) 

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

“जलके तल पर लिखिल नाम “


जलके तल पर लिखिल नाम एकगो विहनि कथा अछि अहाँ  सभ  पढु  बहुत नीक  लागत, कथा एहि प्रकार अछि ----

रतन आ मालती दुनू गोटेक गाम एक दोसरा स सटल छलैक , दुनू गाम मे नोत-हकार आ जवारी चलैत छलैन, वैवाहिक संबंध सेहो होईत  छलैक, बीच मे एकटा पोखरि छलैक जाहिपर एकटा शिव-मंदिर सेहो छल।
एक बेर रतन अपन संगीक संग मलतीक गाछीमे आवि बलजोरी आम बिछि लेने छल ताहिपर मालती सबके गारि पढलक, किन्तु तकर ओहि हेजपर कोनो असरि नहि परलैक, ओ सभ दोलिपर खसल आम बिछिते गेलैक, मालतिक गारिक चखी बंद नहि होएत देखि रतन के किछु नहि  फुरलैक त ओ ओकरा मुह दुसी आगा बढ़ी गेल, संयोगस मालती आ रतन एकही स्कूलक एके बर्गमे नामांकित करोलेक, दुनु गोटे मैट्रिक पास केलक, मालती पारिवारिक आथिक संकट आ नकली सामाजिक मर्यादक कारने आगा नहि पढ़ी सकल आ रतन मेडिकलमें चल गेल,
एक दिन रतन स्नानक बाद महादेव पर माथा टेकने पाठ क अ रहल छल-करचरण कूर्तु वा कजयं  कर्मजं वा............. श्रवन नयन ........../ मंदिर में क्यों नहि छलैक , ताहि काल मालती सेहो पूजा करय अयलि, ओ अच्छत आ वेलपत्र महादेव पर छिटेत लोटो भरि जल ढारी देलक, रतनक माथ नहा गेलैक, रतन के तामस भ गेलैक -गय; एना आन्हरी जका जल किएक ढारलाही? साँसे देह भिज गेल, पर्तुत्तर में मालती बजली-देह त नहिये गैल गेलोअ, आ ओना बताह जका महादेव पर माथ किएक टेकने छले ?. लोको के पूजा नहि कर अ देबही?, माथपर परि गेलो त हम की करियो ? . आ ओ मंदिर स बहरा गेली/  आई स्नान करेत काल मालती रतनके देखि सोचय लागलि-जकरा ओ यैठ ओठीस मारने छलैक, कालराहा कहने छलैक से कतेक मूल्यवान भअ गेलैक, रतन धनिक बापक बेटा अछी, बिवाहक लेल ओकर बाप बहुत रास टकाक माग करेत छएई,

मालतीक हिर्दय आकंछाक उधियानस भरल छलैक, ओ ऊपर आबि काय एकटा ईट उठा लेलक आ घाटपर आबि खूब जुमा क़अ जोस्स पानि में फेकि देलक, ईट चभाक दअ पानिमें खसलैक, जोरस आवाज भेलैक, थोरेक पानि उरलैक आ पोखरीक तरंग चारू कात पसरिक गेलैक,


रतन स्वर सुनी चोक़ल, ओ घाटपर मालतिके नि निर्मिमेसा तकैत देखलक, ओकरा मालती कोनो महाकवि महाकाव्यक नायिका जाका बूझि परलैक, कोनो चित्रकारक उरेहल नायिका जाका बूझि परलैक कोई/ शिलपिक मूर्तिशिल्प जका बूझि परलैक, रतन मालतिके किछु देखैत रहल मालतिक चेहरापर छनिक उल्लास आ तृप्तक रंग अयलैक, आ बिला गेलैक, औ आखिमे सुन्यता उतरि अयलैक, ओ माथ झुका लेलक आ पानिमे पैसि गेलि आ भरि डार पानिमे पानिक सतःके हाथक तरहत्थिस निपय लागलि - र त न, र त न, र त न, फेर ओहि लिखलाहा स्थानक तरंगक बिचमे रतन दिस ताकि ओ जल्दी-जल्दी दू -तिन डूब देलक , रतनक नामसे जेना ओकर सोंसे देह नहा गेलैक. रतन चुप चाप देखैत रही गेला, मालतीके और ओ नहाक चली गेल.

सुभाष झा (मधुबनी)

रविवार, 16 सितंबर 2012

गजल

हकन नोर माए कनै छै 
तकर पुत्र मुखिया बनै छै 

कते आब बैमान बढ़लै
गरीबक टका के गनै छै 

पतित बनल नेता तँ देशक 
दुनू हाथ ओ मल सनै छै 

पएलक कियो जतय मोका 
अपन बनि कs ओहे टनै छै 

बनल  भोकना जेठरैअति
मुदा 'मनु' तँ सभटा जनै छै 

(बहरे मुतकारिब, मात्राक्रम-१२२)

शनिवार, 15 सितंबर 2012

हम एगो गाछ छी


अपन वंशक एकमात्र गाछ
एहि नम्हर परतीमे धीपैत ठूंठ पेड़
इतिहासक पन्नामे डूबल
पल-पल जीबाक लेल तरसैत
दर्दक सागरमे ठाढ़
हम एगो गाछ छी

कहियो साँझ-भोर हमर ठाढ़िपर

नवाह जकाँ होइ छल अनघोल
शीतल छाहरिमे एतै बैसकऽ दू जुआन मन
रिश्ता जोड़ैत ,बाजै छल नव-नव बोल
चिख कऽ बटोही मीठगर फल
दैत छल आशीषक टोल
आइ वैह बोल सुनै लेल
क्षण-क्षण तरसैत
हम एगो गाछ छी

अंधविश्वासक चक्करमे
हलाल भेलोँ जेना खस्सी
काँपैत रहलौँ भविष्यक भयसँ
जेना नवयौवनाक अधरक हँसी
मनुखक नीज कोटी स्वार्थसँ
बली-बेदी पर चढ़ैत
हम एगो गाछ छी

माँटि कतऽ छै आब शहरमे
कंक्रीटक मोट परत छै सतहपर
पानियोँ तँ गुलैरक फूल भेलै
हमरा लेल नै टंकीमे छतपर
हम जनमि नै सकै छी दुर्भाग्यसँ
कोखमे बेटी जकाँ मरैत
हम एगो गाछ छी

हे मुर्ख मानव! आबो तँ जाग
हमरा मारि कऽ की लेबेँ
बेटी गेलौ तँ वंश गेलौ
हम मरबौ तँ तूहूँ मरि जेबेँ
एहि महामुर्खक दुनियाँकेँ
आब छोड़ैत
हम एगो गाछ छी ।

{हमर हिन्दी कवितासँ मैथिली अनुवाद}

अमित मिश्र

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

भगवान आहाँ हमर प्रणकेँ लाज राखि लेब





किछु दिन भेल,
दिल्लीसँ पटना लौटैत रही,
गुंजन श्री 
मोनहीं मोन एकटा बात सोचैत रही,
ताबेत एकता अर्धनग्न बच्चा सोझामे आयल,
आ कोरामे अपनोसँ छोटके लेने,
चट्ट दसोझामे औंघरायल,
हम सोचिते रही  जे आब की करी  ,
बच्चा बाजल,-
सैहेब अहाँ की सोचि रहल छी  ?
हम तआब अपनों सोचनाय छोड़ि देने छी ,
जौ मोन हुए त दान करू,
हमरा हालैतीपर सोच कनै हमर अपमान करू,
बात सुनि ओकर, 
अपन जेबीमे हाथ देलहुं,
आ ओकर तरहत्थीपर किछु पाइ गाइन देलहुं,
डेरा पहूँची कसोचलहूँ की हम ई नीक केलहुं,
या एकटा निरीह नेन्नाकेँ भिखमंगीकेँ रास्ता पर आगू बढ़ा देलहुं,
प्रण केलहूँ अछि जे आब ककरो भीख नहि  देब,
भगवान आहाँ हमर प्रणकेँ लाज राखि लेब,
जा हम त अपने भीख माँगि रहल छी भगवान सँ,
जो रे भिखमंगा,....छिह.......

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

गजल


भीख नै हमरा अपन अधिकार चाही
हमर कर्मसँ जे बनै उपहार चाही

कान खोलिकऽ राखने रहऽ पडत हरदम
सुनि सकै जे सभक से सरकार चाही

प्रेम टा छै सभक औषध एहिठाँ यौ
दुखक मारल मोनकेँ उपचार चाही

सभ सिहन्ता एखनो पूरल कहाँ छै
हमर मोनक बाटकेँ मनुहार चाही

"ओम" करतै हुनकरे दरबार सदिखन
नेह-फूलसँ सजल ओ दरबार चाही
बहरे-रमल
दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ (फाइलातुन) - प्रत्येक पाँतिमे तीन बेर

मंगलवार, 11 सितंबर 2012

रोशन कुमार झा (राड़केँ सुख बलाय- केर लेखक) केर अपन ई-पत्रिका (ब्लॉग) मे चोरिक खुलासा (रिपोर्ट पूनम मण्डल)


-चोर रोशन कुमार झा अखनो नै हटेलक जगदीश प्रसाद मण्डलक ओकरा (चोर रोशन कुमार झा ) द्वारा कएल चोरिक लघुकथा सभ अपन ई-पत्रिका (ब्लॉग)सँ- साहित्यिक जगतमे ऐ सँ घोर क्षोभ अछि- चोर आ ओकर अधीनस्थ सम्पादक-सहयोगीपर कार्रवाइपर विचार
-चोर रोशन कुमार झाक चोरिक सबूत नीचाँ लिंकमे अछि जे ओ अखन धरि अपन ई-पत्रिका (ब्लॉग) सँ डिलीट नै केलक अछि। ओकर एकटा आर ई-पत्रिका (ब्लॉग) छै जैमे ओकर अधीनस्थ सम्पादक अमलेन्दु शेखर पाठक आ सहयोगी कुमार शैलेन्द्र, शंकरदेव झा आदि छै। एकर अतिरिक्त मिथिलांगनसँ जुड़ल रवीन्द्र दासक सेहो ऐ चोरक प्रति सहानुभूति छै।

रणजीत चौधरी
Ashish Anchinhar
अजित आजाद नहिये अखन धरि माफी मंगने छथि आ नहिये अखन धरि ऐ रणजीत चौधरीक आइ.डी.केँ प्रयोग वा सह देनाइ बन्ने केने छथि। एकर प्रमाण अछि जे एतेक बेइजत्तीक बादो ओ अपन "मिथिला अवाज" ग्रुपपर ऐ फेक द्वारा (नमस्कार मिथिला जेकरा फेक नै कहि रहल छथि, तँ प्रमाणित भेल जे ई तूनू मिलल छथि)मुन्नाजीक चोरि कएल गजल अखनो विराजमान अछि, ने ऐ फेक पर कोनो कार्वाइ कएल गेल छै। साबित भेल वा बाकी अछि? मुदा ई लोकनि माफी कोना मंगता। पहिने नवारम्भ पत्रिकामे त्रिकालज्ञक फेक आइ.डी.सँ अजित आजाद जे धंधा करै/ करबै छलाह से "मिथिला अवाज" मे रणजीत चौधरीक माध्यमसँ करबा रहल छथि। नमस्कार मिथिला जी, ऐ रणजीत चौधरीकेँ अहाँ चिन्है छिऐ ने, आ अजित बाबू सेहो चिन्है छथिन्ह, तखन ओ मुन्नाजीकेँ किए कहलखिन्ह जे ओ रणजीत चौधरीकेँ नै चिन्है छथिन्ह? की ई फेक आइ.डी. वा अहाँ सभक छाया मिइत्र मिथिला अवाज कार्यालयसँ ई कुकृत्य तँ नै कऽ रहल अछि?


-जगदीश प्रसाद मण्डलक रचनाक केलक चोरि-
चोरिक लिंक नीचाँ देल जा रहल अछि:
 http://mithlakgaamghar.blogspot.in/2012/05/rikshaavala.html
http://mithlakgaamghar.blogspot.in/2012/05/jivika.html
http://mithlakgaamghar.blogspot.in/2012/05/blog-post_7993.html
http://mithlakgaamghar.blogspot.in/2012/05/blog-post_9212.html
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http://mithlakgaamghar.blogspot.in/2012/05/blog-post_31.html


ई धूर्त रोशन कुमार झा ई सभ रचना जगदीश प्रसाद मण्डलक " गामक जिनगी" सँ चोरा कऽ अपन ई-पत्रिकामे छपने अछि जेकर लिंक ऊपर देल गेल अछि। गामक जिनकीकेँ मैथिलीक पहिल टैगोर पुरस्कार भेटल छै।

पहिनहियो एकर संगी रण्जीत चौधरी मुन्नाजीक रचनाक लगातार चोरिमे पकड़ाएल अछि, जे अजित आजादक मिथिलाक अबाज पर अखनो अछि। अजित आजाद मुन्नाजीकेँ कहने रहथिन्ह जे ओ रण्जीत चौधरीकेँ बैन करताह आ चोरिक रचनाकेँ डिलीट करताह, मुदा हुनकर कार्यालसँ से अखन धरि से नै भेल तावत ओही कार्यालयसँ ई नबका चोर रोशन कुमार झा आबि गेल।

ऐ चोरक संरक्षक अमलेन्दुशेखर पाठक (जिनकर पिता आकाशवाणी दरभंगा खोलने छथिन्ह, जे रोशन झाक निचुक्का ब्लैकमेल पत्रसँ सिद्ध होइत अछि, कारण ओ जकरा चाहता तकरा अमरसँ रोशन झा धरिकेँ आकाशवाणीमे कार्यक्रम देता आ गौहाटीक विद्यापति पर्वक आयोजक ककरा कहियाक टिकट पठबै छथि से ओ हिनके आ बैजू सँ पुछि कऽ आगाँसँ पठेथिन्ह!!), शंकरदेव झा आदि छथि जकरा संगे मिलि कऽ ई ब्लॉग (ई-पत्रिका) चलबैत अछि।
-ऐ संगठित चोरिमे रोशन कुमार झा, रणजीत चौधरी आदि प्यादा अछि, मुख्य खिलाड़ी यएह सभ छै।



रोशन कुमार झा जे रचना चोरि केलक तकर सरगना सभक चिट्ठी/ किरदानी आदि नीचाँमे अछि

मातृभाषा: मैथिलि पाक्षिक ई-पत्रिका(!!)

जे की दरभंगास प्रकाशित पहिल ई-पत्रिका अछि . एकर पहिल अंक छपी चुकल अछि . जेना की सर्वविदित अछि जे अहि स पहिने विदेह ई-पत्रिका सेहो निकली रहल अछि . विदेह साहित्य लेल काज त कैरते अछि मुदा एक टा काज ओ बखूबी क रहल अछि आ दिन प्रतिदिन क रहल अछि . ओ काज अछि जातिवादिताक नाम पर झगरा केनाइ साहित्यकार सभ केर खुलेआम फसबूक आ ब्लोगक माध्यम स गारि पढ्नाई .
मातृभाषा ई-पत्रिकाक अंक देखैत देरी नहीं जानी किया गजेन्द्र ठाकुरअक देह में आगि किअक लागी गेलें आ ओ अपन चेला चपाटीकेर पुनः मैदान में लड़बाक लेल उतारी देलैन . हुनक एक टा चेला जिनकर नाम उमेश् मंडल छियैन ओ अपन घरवाली केर ब्लॉग ईसमदिया पर एक टा पोस्ट केलें जे फल फल आदमी मिलि ब्लाच्क्मैलिंग करबाक उद्देश्य स अहि पत्रिकाक शुरुआत केलक अछि . विदेह फसबूक ग्रुपअक एक टा पोस्ट पर माननीय आशीष अनचिन्हार आ उमेश मंडल जी कमेन्ट देला जे मा
तृभाषा ई-पत्रिकाक सम्पादक महान ब्रह्मण वादी अमलेंदु शेखर पाठक छैथ .

अमलेंदु शेखर पाठक मैथिलिक साहित्यकार , दरभंगा रेडिओ स्टेशनअक उद्घोषक आ वरिस्थ पत्र्रकार छैथ . आब सवाल उठैत अछि जे एहन आदमी पर उमेश मंडल जी ब्रह्मण वादी हेबाक आरोप किअक लगा रहल छैथ .

अहि सवालक जवाब लेल किछु समय पाछू घुर पडत . रेडिओ स्टेशन स एक दिन पाठक जी उमेश मंडल केर फ़ोन केल्थिन जे अपनेक पोस्टल एड्रेस की अछि ? उमेशक पुछला पर पाठक जी कहलें जे आहाक रेडिओ में कथा पढबा हेतु छित्ती पता रहल छि . उमेशक काटन छल जे हमरा बदला ज हमर पिताजिकर अवसर देब त हमरा नीक लागत . पाठक जी कहलें जे आहा चिंता जुनी करू हम दुनु गोटेक अवसर देब . ओही दिन स पाठक जी ओही उमेश लेल भगवान् छल आ बहूत दिन रहबो केला . तखन उमेश आ हुनका किअक गाडिया रहल छैन .
पछिला बरख गुवाहाटी में अंतर रास्ट्रीय मैथिलि सम्मलेन भेल छल ओही थाम २ दिवसीय कार्यक्रमअक आयोजन छल . पहिल दिन कवि घोस्थी आ दोसर दिन विद्यापति समारोह . उमेश मंडल आ हुनक पिताजी केर दोसर दिनक आयोजनक लेल आमंत्रित कैल गेल छल , मुदा महा साहित्यकार उमेश मंडल एक दिन पहिने गुवाहाटी पहुँच गेला . उमेश पाठकजी स आग्रह केलें जे हाम्रो पिताजी केर कविता पढबा लेल बजेबैं अपनेक आभारी रहब . मुदा समय कम रहबाक आ कवि बेसी हेबाक कारण उमेशक आग्रह पाठक जी नहीं पूरा का सकला अहि कारने जे आदमी हुनका नजरी में आई धरी भगवान् छल से आबी ब्राह्मण वादी बनी गेल छल .
विदेह केर एहो कास्ट छैन जे दोसर ई-पत्रिका किअक निकली रहल अछि . कारण साफ़ अछि जाहि पत्रिकाक सम्पादक मंडली लोकनि अपन समय झगरा आ गारि पढबा में बितेता टा निक रचना कतय स छपता .

"राड़केँ सुख बलाय" केर लेखक रोशन कुमार झा रामदेव झाक बेटा, विद्यानाथ झा विदितक जमाए आ चन्द्रनाथ मिश्र "अमरक" नैत शंकरदेव झा-विजयदेव झाक संग मिलि कऽ एकटा ब्लैकमेलिंग ब्लॉग ई-पत्रिका (!!) मातृभाषा शुरू केलक अछि।(रिपोर्ट पूनम मण्डल)
राड़केँ सुख बलाय" केर लेखक रोशन कुमार झा रामदेव झाक बेटा, विद्यानाथ झा विदितक जमाए आ चन्द्रनाथ मिश्र "अमरक" नैत शंकरदेव झा-विजयदेव झाक संग मिलि कऽ एकटा ब्लैकमेलिंग ब्लॉग ई-पत्रिका मातृभाषा शुरू केलक अछि।
धूर्त रोशन कुमार झा:राअर के सुख बले :
मिथिलाक गाम घर :

राअर के सुख बले :

पढुआ काका किछु काज स दरभंगा आयल छलाह . जखन सव काज भ गेलैन त बस पकर्बाक लेल बस स्टैंड गेलाह , मुदा गामक बस छुट्टी गेलैन .
पधुआ काका हमरा फ़ोन केलैने ? रोशन कतय छ: ? हम आकाशवाणी लग ठाढ़ छि ? हाउ हम तोहर घरे बिसरी गेलिय . तो आबी क हमरा ल जा .

जखन हम पढुआ काका क ल के घर पर आय्लाहू त घर पर लाइन छल .चुकी गर्मी काफी छल ताहि कारने पंखा चला हुनका लग बैसी गेलहु आ हुनका अपन कंप्यूटर पर फसबूक के खोली हुनका देखाबय लाग्लाहू ?
अचानक ललका पाग केर देखैत देरी हुनक मन गडद-गडद भ गेलैने . ओ कह्लैने जे की " इ थिक मिथिला वासी केर पहचान , आ पाग पहिर्ला स बाढ़ी जाइत अछि मान "

हम कहलियैक , काका किछू लोक केर कथन अछि जे की पाग मात्र उपनयन , विवाह में पहिरे वाला एक टा परिधान अछि जे की बाभन आ लाला सब मे पहिरल जाइत अछि ?

ओ कह्लैने हौ जे इ गप करैत अछि ओ पागल हेताह ?
हम कहलियैक , कका ओ सब पढ़ल लिखल आ पैघ-पैघ साहित्यकार छैथ आ विदेह सनक पत्रिका सेहो निकालैत छैथ ?

किछु काल केर उपरान्त पढुआ कका कह्लैने जे की एकटा , दूटा ओही महानुभाव केर नाम त कहक जे सब पाग केर मिथिला केर मान नहीं बुझैत अछि आ मात्र ओकरा जातिगत स जोरी रहल अछि ?

हम कहलियैक आशीष अनचिन्हार , उमेश मंडल , पूनम मंडल प्रियंका झा आ विदेह केर सम्पादक गजेन्द्र ठाकुर .
कका कह्लैने हौ अहि मे त कोनो पैघ साहित्य कार लोकनि केर नाम कहा अछि ?
कका आजुक समय केर इ सब करता धर्ता छैथ साहित्य जगत के .
हौ यदि आजुक साहित्य केर करता एहन छैथ त नहीं जानी की होयत भविष्य मे ?

हमरा सब केर समर में हरिमोहन झा , नागार्जुन , दिनकर सब सनक महान रचना कार लोकिन छलाह . से इ सब कोनो हुनका स पैघ छैथ जखन ओ लोकिन पाग पहिर अपना केर गौरवान्वित बुझैत छलाह तखन आजुक नौसिखुआ सब के की औकात ?

ओ कह्लैने हौ बाऊ ब्रह्मण एकर विरोध किअक क रहल अछि से नहीं जानी मुदा जिनकर बाप दादा कहियो पहिर्बे नहीं केने हैथ हुनका त अवस्य ने असोहाथ बुझेतैन .
ओहुना मिथिलाक गाम घर मे कहल जाइत अछि जे की " राअर केर सुख बले " .
 ·  ·  · 3 hours ago


  • 9 minutes ago ·  · 1

  • Ashish Anchinhar एहि पत्रिका केर सम्पादक महान ब्राम्हणवादी अम्लेन्दु शेखर पाठक अछि
    9 minutes ago via mobile ·  · 1

  • Umesh Mandal जगदीश प्रसाद मण्डल जीकेँ गौहाटी विद्यापति समारोहमे मुख्य अतिथि बनाओल गेलापर वैद्यनाथ बैजू आ अमलेन्दु शेखर पाठक आदि हंगामा केने रहथि, अमलेन्दु शेखर पाठक कहि रहल रहथि "सपनोमे नै सोचने हेतै", एकर वीडियो देखू www.purvottarmaithil.org पर

अमलेन्दु शेखर पाठकक आ बैजू आदिक कुकृत्यक वीडियो आब www.purvottarmaithil.org
तकर बाद एकरा सभकेँ मंचपर सेहो बजाओल गेलै आ ई निर्लज्जतासँ टीक नुरियाबैत ओतऽ पहुँचल।

रणजीत चौधरी नाम्ना एकटा फेक आइ.डी.द्वारा मुन्नाजीक गजल चोरि कऽ कए मिथिला अवाज ग्रुप (संचालक अजित आजाद) पर देल जा रहल अछि। हमरा शंका अछि जे ई फेक आइ.डी. अजित आजाद द्वारा द्वारा संचालित अछि वा ओकरा द्वारा सह देल जा रहल अछि

सोमवार, 10 सितंबर 2012

गजल


मनुखक एहि दुनियाँमे कोनो मोल नहि रहल 
हमरा लेल केकरो लग  दूटा बोल नहि रहल 

बजाएब  कतए ककरा  सभटा साज टूटिगेल 
छल एकटा फूटल ओहो आब ढोल नहि रहल 

सभतरि घुमैत अछि   मनुखक भेषमे हुडार
नुकाबै लेल ओकरा लग कोनो खोल नहि रहल  

रातिक भोजन ओरिआनमे माएक मोन अधीर 
छल हमर बाड़ीमे एकटा से ओल नहि रहल 

हँसैत आ मुस्काइत रहए जतएकेँ लोकसभ 
मिथिलाक गाममे 'मनु' आब ओ टोल नहि रहल 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१९) 

गजल


पुष्प लता जेना हम लपटाएल छी
व्यथित प्रेम सँ हम त' औनाएल छी

पुष्प सन खिलल छै रूप कांट मुदा
छी अतृप्त भ्रमर तैं भरमाएल छी

फंसेलो माँछ जकां अहाँ चारा खसा के
ओही माँछ क' जाल में ओझराएल छी

गीत कवित सबटा बिसरलहूँ यौ
फुसिए के प्रेम में हम बौराएल छी

भादव माष एहन ऊमसल प्रेम
ऊमसल प्रेम संग अकुलाएल छी

अतिसय किछ नहि होय नीक 'रूबी'
समेटू भाभट व्यर्थ अन्हराएल छी
------------वर्ण -१४ --------------
रूबी झा

गजल



चुपचाप बैसल छी एकातमें
जेना बुनी मेही बरिसातमें

ऐना अहाँ मोनक' नै दाबियो
लागे सुहनगर सभ अनुपातमें

चुपचाप छी ओते बैसल किये
ठोरत' दबौने छी प्रतिघातमें

भोजनक' बेरा में किए रूसय छी
देखू परोसल माँछो पातमें

चुप्पा सँ लागे अछि बेसी त' भय
बर छी अहाँ जेना बरियातमें

२२१२- २२- २२१२ ( सभ पांति में )

रूबी झा

गजल


सुख भरल संसार चाही
जीब' हेतु प्यार चाही.

भीख मांगे बाट निरखे
ओकरो अधिकार चाही

घर घरारी सोन चानी
भरल घर भंडार चाही

नाम चाही काज चाही
संपदा अंबार चाही

दूध बाटी भरल मांगे
स्वागतो सत्कार चाही

२१२२ -२१२२ ( सभ पांति में )

पर्वत एहन दर्द


कोलाहल अछि सागर एहेन ,
लहर एहेन अछि भरल द्वन्द ,

पर्वत एहन दर्द भरल अछि ,
आ ढेपा एहन अछि आनंद l

जिनगी क इ रस देखु त ,
कतेक लगेत नुनगर अछि ,

जीत जाई अछि दुःख दर्द सभ,
एसकर सुखे टा हारल अछि ,

पूष्प सरीखा मांछक ऊपर ,
ओछायल अछि काटंक फंद,

पर्वत एहन दर्द भरल अछि ,
आ ढेपा एहन अछि आनंद l

जतबे ताकि हम शीतलता ,
ओतबे लहरल आइग भेटए,

प्यास त चुप चाप भेल अछि ,
मौनक् मदिरा हम पिलहूँ,

संपन्न भा गेल सबटा गीत ,
शेष बांचल अछि व्यथा केर छंद ,

पर्वत एहन दुःख भरल अछि ,
आ ढेपा एहेन अछि आनंद l

[रूबी झा ]

मणिपद्म जयन्तीपर दिल्लीमे मिथिलांगन द्वारा कवि गोष्ठी ९ सितम्बर २०१२ केँ सम्पन्न(रिपोर्ट पूनम मण्डल)


-मणिपद्म जयन्तीपर दिल्लीमे मिथिलांगन द्वारा कवि गोष्ठी ९ सितम्बर २०१२ केँ सम्पन्न
-कवि गोष्ठीक संचालन मानवर्धन कण्ठ केलनि।
-कुमार शैलेन्द्रक कविता पाठक दौरान दर्शक दीर्घासँ अभद्रतापूर्ण टोका-टोकी भेल। शुरूमे कुमार शैलेन्द्र टिप्पणी केने रहथि जे महेन्द्र मलंगिया जी कविता नै लिखै छथि। मंचपर कुमार शैलेन्द्रक टिप्पणी छल जे कविता नै लिखिनिहार नीक नाटक नै लिखि सकैए। तकर बाद महेन्द्र मलंगियाजी बिनु कविता पढ़ने  उठि कऽ चलि गेलाह। तकरे बदलामे कुमार शैलेन्द्रक कविता पाठक दौरान दर्शक दीर्घासँ अभद्रतापूर्ण टोका-टोकी भेल। जातिवादी रंगमंचक दू ग्रुपक बीच भऽ रहल ऐ घटनाक्रमक बाद संचालक शान्ति बनेबाक अपील केलन्हि। तकर बाद टोका-टोकी केनिहार पाँचो व्यक्ति सेहो किछु कालमे चलि गेला।
-रवीन्द्रनाथ ठाकुर, मुन्नाजी, विनीता मल्लिक, मानवर्धन कण्ठ , कुमार शैलेन्द्र, रमण कुमार सिंह आदि कविता पाठ केलन्हि।



·        Satya Narayan JhaPoonam Mandal and Indra Bhushan Kumar like this.
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Sanjay Choudhary जे कियो ई रिपोर्ट लिखने छथि ओ सभागार मे उपस्थित नई छलाह । कार्यक्रम बहुत नीक वातावरण आ नीक माहौल मे संपन्न भेल । कुमार शैलेंद्र जी महेंद्र मलंगिया जीक नामो तक नई लेलखिन्ह । रिपोर्ट लिखबला सं अनुरोध जे आँखि मुईन कझटहा नई फेकू अहांक विश्वसनीयता समाप्त भजैत ।
Thursday at 7:03am · Like · 1
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Rawindra Das je kyo ehan reporting karet chi o chahait chi je maithil sab jati ke larai me ojhraol rahathi aa ehin kaj ta bahuto lok ka rahal chathi kala me pit ptrakarita ke kono jagah nai chaik o rajnitikik patrakarita karu aa chadm nam sa nahi likhu
Thursday at 10:41am · Like · 1
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Rawindra Das मुदा एक टा काज ओ बखूबी क रहल अछि आ दिन प्रतिदिन क रहल अछि . ओ काज अछि जातिवादिताक नाम पर झगरा केनाइ साहित्यकार सभ केर खुलेआम फसबूक आ ब्लोगक माध्यम स गारि पढ्नाई
Thursday at 11:43am · Like · 1
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Poonam Mandal संजय चौधरी जीकुमार शैलेन्द्र जी रवीन्द्र सुमनकेँ कहने रहथिन्ह दुनूमे सँ कोनो एक गोटा सँ पुछि लेबहमर समदिया ओतए उपस्थित छल। अहाँ जातिवादी रंमंचसँ जुड़ल छी तेँ अहाँक छटपटाएब निश्चिते,मिथिलांगन केँ जँ अपन प्रतिष्ठा बचेबाक छै तँ अहाँ सन लोकसँ दूरा बनाबए पड़तै। मलंगिया जे मणिपद्मक विषयमे एकांकी संग्रह (साहित्य अकादेमी) मे जे लिखने छथिन्म्हह से अहाँकेँ नै बुझल हएत। पढ़ू आ मलंगिया जीक चरित्रक विषयमे बुझू।
3 hours ago · Unlike · 1
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Poonam Mandal रवीन्द्र दास जी। आँखि मुनि लेलासँ जँ समाधान निकलितै तँ दुनियाँमे कोनो समस्ये नै रहितै। काला आ साहित्यमे मैथिला ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ जै तरहेँ जातिवादी राजनीति कऽ रहल छथि/ केने छथितकर विरोध पीत पत्रकारिता छै। अहाँ आइ.डी. हमरा छद्म बुझा रहल अछि कारण जे अहाँ कॉपी-पेस्ट केने छी (साहित्यकार सभ केर खुलेआम फसबूक आ ब्लोगक माध्यम स गारि पढ्नाई) आदिसे एकटा चोर का "राड़ केँ सुख बलाय" केर लेखक "रोशन कुमार झा"क पोस्ट छिऐ। ओइ चोरकेँ पहिनहिये समदियासँ बैन कऽ देल छै। ओकर कुकृत्य नीचाँक लिंकपर देल अछिhttp://esamaad.blogspot.in/2012/09/blog-post_502.html
3 hours ago · Unlike · 1
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Gajendra Thakur जातिवादी रंगमंच आ ओकर संगी साथी सभक निर्लज्जता आँखि खोलएबला अछि।
 Poonam Mandal जातिवादी रंगमंच जीवन झाक सुन्दर संयोगक मंचन २०१२ मे करैए आ कहैए जे ई पहिल मंचन छिऐ, जखनकि मलंगियाजीक जन्मसँ पहिने एकर मंचन भऽ चुकल अछि। संजय चौधरीजी अहाँ आ अहाँक संगी सभक जातिवादी रंगमंचक आ ओकर संगी साथीक विश्वसनीयता आ रवीन्द्र दासक पीत पत्रकारिता कहिया ने खत्म भऽ गेल देखू लिंक http://maithili-drama.blogspot.in/2012/06/blog-post_29.html
Kumar Shailendra samadiya me chapal riport ekdam galat anuchit aa bhramak achi.Ehan galat prachar nai karbaak chahi. malangiyajee bimar rahathi o aayalo nahi rahathi. ham aa sanjay choudhry hunka ghar par dekhi aayal rahi.Hamar kawitak khoob swagat bhel rahay karan o hamar doo masak darbhanga prawas par kendrit rahay. Samadiya me chapal ripot pardhlak baad hamra pahil khep e bujhba me aayel je videh sa jural lok sab katek grinit abhiyan chala rahal achi.
Poonam Mandal जातिवादी रंगमंचसँ जुड़ल कुमार शैलेन्द्रक झूठ घृणित, आ डरपोक जातिवादी रंगमंच जे चोर रोशन कुमार झा (राड़के सुख बलाए केर लेखक)सन कॉपीराइट चोरक संगी अछि, केर असली चेहरा अछि, जे प्रोग्राम सभमे अभद्रता करैए, एक दोसरासँ लड़ैए मुदा विदेहक विरुद्ध एक भऽ जाइए।

  • Gajendra Thakur कुमार शैलेन्द्र आ आन जातिवादी रंगमंचकर्मीक ई पुरान आदति छन्हि, भोजपुरी-मैथिली अकादेमीक सेमीनार मे कुमार शैलेन्द्र आ किछु आर गोटेक मंचेपर वाक युद्ध हम आँखिसँ देखने छी (प्रायः देवशंकर नवीन संगे), मुदा अगिले सेमीनारमे माहान मलंगिया, महान देवशंकर, महान गुंजन, महान सुभाष चन्द्र यादव आदिक जयघोष सेहो शैलेन्द्र लगेने रहथि, आ तैपर मलंगियाजी देवशंकर नवीनकेँ कहने रहथिन्ह- की भऽ गेलै आइ कुमार शैलेन्द्रकेँ, उलटा धार बहा रहल अछि।


  • Gajendra Thakur झूठपर टिकल अछि जातिवादी रंगमंच। किछु वीडियो ऐ दुनू कार्यक्रमक विदेह वीडियोमे भेटि जाएत, भऽ सकैए नरम-गरम दुनू घटना भेटि जाए।



 
Gajendra Thakur रोशन कुमार झा नाम्ना जातिवादी चोरक संग जातिवादी रंगमंच आ कुमार शैलेन्द्रक साँठ-गाँठ सोझाँ अछि। तखन ककर गप ठीक मानल जाए, झूठ आधारित जातिवादी रंगमंचक वा सत्य आधारित समदियाक??
  • Poonam Mandal ऐ चोरक संगी साथी (शंकरदेव झा, कुमार शैलेन्द्र, अमलेन्दु शेखर पाठक आदि) सभक गपपर विश्वास कएल जा सकैए?









Poonam Mandal अखनो जगदीश प्रसाद मण्डलक रचना जातिवादी रंगमंचक सहयोगीक सह पर ई चोर रोशन झा ऊपरक देल लिंकपर चोरेने अछि।
  • Sanjay Choudhary गजेंद्र ठाकुर जी आ पूनम मंडल जी अहाँ सब गैर जातिवादी रंगमंच ल' क' दुनियाँ के सामने कियेक नई अबई छी


  • Sanjay Choudhary अहाँ सब लग जतेक गैर जातिवादी नाटक अछि हमरा पठा दिय आ संगहि जतेक गैर जातिवादी कलाकार सब छथि तिनको कहियो जे हमरा सब संग आबि क' नाटक करैथ तखने जातिवाद समाप्त हैत । अगर जातिवाद छैक त' ओकरा समाप्त कर' के प्रयास हेबाक चाही ताही लेल सब जाति के लोक सब के मंच पर आब' पड़तय । हमरा सब लग जे कलाकार आ नाटक उपलब्ध रहैत अछि ओही सं काज चलब' पड़ेयै । अहाँ सब गैर जातिवादी कलाकार हमरा खोजि क' दिय अपन गैर जातिवादी कलाकार सब के कहियो जे हमरा सब संग मिल क' काज करत । दिल्ली सन शहर मे नाटक केनाई बहुत जोखिम के काज छैक आरोप लगेनाई बहुत छोट गप होईत छैक अपन रोजी रोटी छोड़ि क' नाटक मे लाग' पडैत छैक । और अहाँ सब सबटा चीज के मटियामेट कर' मे लागल रहै छी । एना हल्ला मचब' सं नीक हैत जे एकटा विकल्प दियौ मैथिली रंगमंच के जे गैर जातिवादी होईक । जातिवाद समाप्त भ' रहल छैक मुदा अहाँ सब ओकरा हावा देब' मे लागल रहै छी । जखन देखू जातिवाद शब्दक ढिंढोरा पिटैत रही छी । अगर सामर्थ अछि त' दिल्ली मे एकटा गैर जातिवादी रंगमंच स्थापित करू हमहूँ ओही रंगमंच सं जुड़ि जैब ।


  • Gajendra Thakur संजय जी, उपरका लिंकपर समानान्तर रंगमंच ( गैर जातिवादी समानान्तर रंगमंच) आ नाटक भेटि जाएत, अहाँ केहेन रंगमंचसँ जुड़ल लोक छी जे अहाँकेँ ई बुझलो नै अछि? ओना ई अहीं टाक नै सम्पूर्ण जातिवादी रंगमंचक समस्या अछि अहाँक ई प्रश्न "अहाँ सब गैर जातिवादी रंगमंच ल' क' दुनियाँ के सामने कियेक नई अबई छी" कूपमंडूकताक द्योतक अछि वा जातिवादी कट्टराक। अहाँ लग गएर ब्राह्मण-गएर कायस्थ किए नै आबि रहल अछि ओइपर सोचू, लोककेँ पठेबै तँ ओ जाएत? पहिने भरोसा कायम करू, की भरोसा काएम कऽ सकल छी? दिल्ली सन शहर मे नाटक केनाइ "विदेह समानान्तर रंगमंचक" मूल उद्देश्य नै छै, कारण विदेहसँ जुड़ल लोक भरि विश्वमे छथि, आ मिथिलामे "विदेह समानान्तर रंगमंचक" होइत अछि, होइत रहत। मैथिली रंगमंचकेँ विकल्प देल जा चुकल छै। जे जातिवादी शब्दावली अहाँक आ अहाँ सन दोसर जातिवादी नाटककारक नाटकमे छन्हि तकर बाद अहाँ सोचियो केना लेलिऐ जे लोक अहाँ सभक घृणाक रंगमंचसँ जुड़त? रोजी-रोटी छोड़ि कऽ समाजकेँ बँटबाक काजमे लगनाइ जँ अहाँक प्रियोरिटी अछि तँ ओकरा (जातिवादी रंगमंचकेँ) जड़िसँ खतम केनाइ हमर प्रियोरिटी अछि, आ से प्रियोरिटी हमरा सभक गामसँ शुरू भेल अछि जतए नेटिव स्पीकर बसै छथि, फण्ड आधारित दिल्ली नै। मराठी नाटक शोलापुर आ मुम्बै आ गुजराती नाटक अहमदाबाद आ भरूच निर्धारित करैत अछि। अहाँकेँ कोना शक भऽ गेल जे मैथिली नाटक दिल्ली निर्धारित करत आ साम्प्रदायिक नाटककार निर्धारित करता? हमरा सभक सामर्थ्य आस्ते-आस्ते अहाँ लोकनिकेँ देखाइ पड़िये रहल अछि, पड़िते रहत, .. फूल्स पाराडाइजसँ हमरा लोकनिकेँ कोनो मतलब नै।




  • Gajendra Thakur आब ऐ रिपोर्टपर घुरी- जातिवादी रंगमंच आ ओकर संगी साथी सभक निर्लज्जता आँखि खोलएबला अछि। गिरगिट सेहो हिनका लोकनिक रंग बदलबाक आ झूठ बजबाक क्षमता देखि लजा जाएत।




  • Poonam Mandal संजय जी, पहिने तँ कुमार शैलेन्द्र, रवीन्द्र दास आदि जे झूठ बाजल छथि ओइ लेल ओ सभ माफी मंगथु, अहूँकेँ सभ गप बूझल छल मुदा अहाँ गपकेँ झाँपै-तोपैक प्रयास केलौं, किए? फेर कुमार शैलेन्द्र , अमलेन्दु शेखर पाठक, रवीन्द्र दास आदि जै चोर रोशन कुमार झा (जकर डायलोग रवीन्द्र दास कॉपी केने छथि) केँ जातिवादमे झोंकि जगदीश प्रसाद मण्डलक रचनाक चोरिक बादो पाछासँ सह दऽ रहल छथिन्ह, तकरा लेल की सजा छै? की एकर बादो अहाँ लोकनि सहयोगक आशा रखै छी?