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शनिवार, 1 सितंबर 2012

गजल


बिनु बातक ऐना भs के अपन नै रुसय ककरो
बिनु चोटक सपन नै ऐना कs के टुटय ककरो

राखल आगु में होय लाखे कियेक नै भोग छप्पन
प्रेमक बिहीन आ स्वादक बिनु नै रुचय ककरो

ईर्ष्या जलन में भs गेल छैक सबटा नाश चौपट
मुदा अन्तोकाल में आंखि किएक नै खुजय ककरो

नारी के छै नारी शत्रु छी हम कुरूप छै ओ सुन्नरि
ढारि तेज़ाब खुश ऐना करेजो नै जरय ककरो

व्यर्थहिं जनु अपन मांथ कs खपा रहल छै 'रूबी'
जानि बुझी बनल अज्ञानी बातो नै बुझय ककरो
-----------------------वर्ण १९ -------------------
रूबी झा

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