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सोमवार, 10 सितंबर 2012

गजल



चुपचाप बैसल छी एकातमें
जेना बुनी मेही बरिसातमें

ऐना अहाँ मोनक' नै दाबियो
लागे सुहनगर सभ अनुपातमें

चुपचाप छी ओते बैसल किये
ठोरत' दबौने छी प्रतिघातमें

भोजनक' बेरा में किए रूसय छी
देखू परोसल माँछो पातमें

चुप्पा सँ लागे अछि बेसी त' भय
बर छी अहाँ जेना बरियातमें

२२१२- २२- २२१२ ( सभ पांति में )

रूबी झा

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