किछु दिन भेल,
दिल्लीसँ पटना लौटैत रही,
मोनहीं मोन एकटा
बात सोचैत रही,
ताबेत एकता अर्धनग्न
बच्चा सोझामे आयल,
आ कोरामे अपनोसँ छोटके लेने,
हम सोचिते रही जे आब की करी ,
बच्चा बाजल,-
सैहेब अहाँ की सोचि
रहल छी ?
हम त’ आब अपनों सोचनाय छोड़ि देने छी ,
जौ मोन हुए त दान
करू,
हमरा हालैतीपर
सोच क’ नै हमर अपमान करू,
बात सुनि ओकर,
अपन जेबीमे हाथ देलहुं,
अपन जेबीमे हाथ देलहुं,
आ ओकर तरहत्थीपर
किछु पाइ गाइन देलहुं,
डेरा पहूँची क’ सोचलहूँ की हम ई नीक केलहुं,
या एकटा निरीह नेन्नाकेँ भिखमंगीकेँ रास्ता पर आगू बढ़ा देलहुं,
प्रण केलहूँ अछि
जे आब ककरो भीख नहि देब,
भगवान आहाँ हमर प्रणकेँ लाज राखि लेब,
जा हम त अपने भीख माँगि रहल छी भगवान सँ,
जो रे भिखमंगा,....छिह.......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें