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बुधवार, 16 मई 2012

की हौऊ तों कमजोर भ गेलह

की हौऊ तों कमजोर भ गेलह 
नांगरी कटा क गाम बिसरलह
अप्पन भाषा आ ठाम बिसरलह
मिथिला के पहिचान बिसरलह
बैमानी पोरी पोर भ गेलह
की ............................................

तिलकोर के पाठ बिसरलह
मिथिला के ठाठ बाट बिसरलह
पेंट शर्ट आ हेट फेट में
धोती कुरता पाग बिसरलह
बिन मुद्दा के शोर भ गेलह
की.....................................
अनका लेल भरी दिन खटई  छः
बाल आ बच्चा किहरी कटयी छः
बाबु छोरी क मोम आ पोप बजय छः
तों सुनी सुनी क खूब नचय छः 
बिन बुझने तूं चोर भ गेलह
की ..........................................
कनिया मनिया जॉब करय छः
अपना पर पेटो नै भरय छः
अपने हाथे करम कुटय छः
बात बात में झगरी परई छः
एहन कोना धकलोल भ गेलह
की ..........................................
गामक शान के कतय नुकेलह
बिन सोचने सब किछ हेरेलह
बाप माय के कोना बिसरी क
अपन "आनंद" में घोर भ गेलह
की हउ.........................आनंद
एही रचना के किओ व्यक्ति अपना जीवन स नहीं जोरी इ मात्र एक टा रचना थीक| एही रचना के रचना कार आनंद झा हम स्वं छी | बिना पूछने एकर उयोग नहीं करी
जय मिथिला जय मैथिलि   

बुधवार, 9 मई 2012

हे मिथिला तूं कानय नै

हे मिथिला तूं कानय नै
जानय छी तोरा बड़ दुःख होई छौ
लेकिन नोर खासबय नै
हे मिथिला ...........................
हमहूँ तोहर कर्जदार छी
अपने कर्मे शर्मसार छी
भागी गेल छी गाम छोरी क
एबऊ तूं घबराबई नै
हे मिथिला.......................
याद अबैये खेत पथार
एतय बनल छी हम लाचार
पेट के खातिर भटैक रहल हम
लग किओ बैसाबई नै
हे मिथिला तूं .....................
तू त में छे दुःख के बुझ्बें
अप्पन कस्ट के तू नै कहबे
जनई छी तोहर ममता गे में
मिथिला में फेर बजाबई ने
हे मिथिला तूं कानय नै 


रचनाकार -आनंद झा ....

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

आयी फेर याद आयल, किएक मिथिला देश कें

आयी फेर याद आयल, किएक मिथिला देश कें

छोरी देने छी जहन, हम सब अप्पन खेत कें

आयी फेर याद ..............................
माय के कोना बिसरलौं , की भेले इ की कहू

चली परल छी लय पिपासा, छोरी अप्पन भेष कें

भाई छुटल , मित्र छुटल, छुटि गेल सब याद सब

हम तरपी क रही गेलौं, बस हाथ धेने केस कें

आयी फेर याद आयल ........................

नया जमाना आबी गेलय, पाई टा भगवन छई

जाकरा देखू एके रस्ता , पायी के इन्सान छई

सखी छुटल मीत छुटल, रुसी गेल सबटा कोना

आब त बिसरी रहल छी, नेंपन के खेल कें

आयी......................................

गाम पर पीपर तर में , खेलाइत रहिये कोना कहू

रोज एतय परदेश में छी , दिन खुजिते रोज बहु

मोन कनाल अंखि कनाल, देखि के कोना सहू

सोचिते सबटा मिटा मितायल, सपना अपने देखि कें

आयी .....................................
संस्कार सेहो बिसरलौं , चललौं पश्चिम के बाट पर

मिथिला बस कल्पैत रहली, उएह टूटलहिया खाट पर

अंत में मिथिले टा पूछती , राखू नै एकरा ताख पर

सुनु आनंद के बात मिता, घर नै बनाबू बालू आ रेत कें

आयी फेरो .................................

रचनाकार

आनंद झा 'परदेशी'


(रचनाकार आनंद झा एकरा कतौ हमरा स बिना पूछने नै उपयोग करी )

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

अपन महिष कुरहैरिये नाथब हम्मर अपने ताल

धरती के आकास कहब , आ अकास के पाताल
अपन महिष कुरहैरिये नाथब हम्मर अपने ताल
धरती .......................................................
चिबा चिबा क बात बजई छी, मिथिला हम्मर गाम
टांग घिचय में माहिर छी, बस हम्मर अतबे काम
तोरब दिल के सदिखन सबहक, पुइछी पुइछी क हाल
अपन महिष ......................................
आदि काल स लोक कहई ये , छी हम बड़ विद्वान
झूठक खेती खूब कराइ छी, झूठे के अभिमान 
दोसर के बुरबक बुझई छी, क के हाल बेहाल
अपन महिष .......................................
इक्कर गलती ओक्कर गलती, गलती टा हम तकाई 
एकरा उलहन ओकरा उलहन, जत्तेक हम सकई छी
भेटत फेर "आनंद" कोना क बनब अगर कंगाल
अपन महिष ....................................................

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

चल रइ बौआ गाम पर

चल रइ बौआ गाम पर
चढलें किये लताम पर
कहबय चल कक्का के जा क
बैसल छथिन्ह दालान पर
चल ....................................
उम्हर एमहर कत तकई छें
लताम छलय ये थुर्री
खूब खेलो घुरमौरी
कानक निचा थापर लगतऊ
नै त चलय ने ठाम पर
चल .........................
केहन बेदर्दी भेलें रउ छौंरा
पतों के तू झट्लें
अखनो धरी नै हटलें
देखही देखही भैय्या एल्खिन
मार्थुन छौंकी टांग पर
चल ...........................

लेखक : आनंद झा

एही रचना के कोनो ता भाग के उपयोग हमरा स बिना पूछने नै करी
एकर सब टा राईट हमरा लग अछि अपन विचार

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

बरका बरका बात करइ सब

बरका बरका बात करइ सब ,छोटका के के पुछतयी
सब परेलई छोरी छारी क ,मिथिला ले के सोचतयी
सुन रऊ बुआ सुन गे बुच्ची ,करही किछ विचैर क
हिला दही सौंसे दुनियां के, उखरल खुट्टा गैर क
हिला दही सौंसे दुनियां के.................

अपने पेट भरई के खातिर , नगरी नगरी भटकई छें
मात्री भूमि के काज नै एलें, तहि दुआरे तरसय छें
अप्पन मिथिला राज्य बना ले, मिलतौ छप्पर फाड़ी क
हिला दही सौंसे ..........................

अपने भाय के टांग जं घिचबें, कोना क आगा बढ्बें रऊ
अनका खातिर खैधि खुनई छें, ओही खैधि में खसबें रऊ
कदम बढा तों हाथ मिला क चल ने फेर सम्हारी क
हिला दही सौंसे ............................

मिथला में जं जनम लेलौं आ , काज एकर जं नै एलौं
जीवन सुख पिपासा में, नै जानि कत हम फसी गेलौं
देख इ दुनियां कोना बैसल छौ मिथिला के उजारी क
हिला दही सौंसे ...........................

जनक भूमि सीता के धरती , कनई छौ कोना तरपी तरपी
तू बैसल छे रइ बौरह्बा दोसर लेलकौ संस्कार हरपी
जाग युवा आ जागय बहिना , सोच नै तों उचारी क
हिला दही सौसे .............................

एम्हर उम्हर नै तों तकई बस मिथिला के बात करइ
अप्पन भाषा मैथिलि भाषा जत जायी छें ओतय बजय
एक दिन "आनंद" के पेंबे मिथिला में तो जाय क
हिला दही सौंसे .........................
आनंद झा
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इ रचना आनंद झा द्वारा लिखल गेल अछि यदि अपने एकर कोनो ता अंश या पूरा कविता के उपयोग कराय चाही त बिना हरा स पूछने नै करी :

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

गे में कोरा में उठा ले हमरा ,ह्रदय स लगा ले आयल छि तोरा शरण में चरण स लगा ले

गे में कोरा में उठा ले हमरा ,ह्रदय स लगा ले 
आयल छि तोरा शरण में चरण स लगा ले 
गे में ........................................................
हमहू तोरे सखा छि , भाटैकी हम गेल छि 
माया आ लोभ में , सहती हम गेल छि 
गे में अंचार में नुका ले हमरा नयन में समां ले 
गे में ............................................................

माँ नै कुमाता होई छई, हमही कपूत छि 
हमरा विसरी नै ऐना , हमहू तोरे पूत छी
गे में दया तों देखा दे हमरा दुबई स बचा ले 
गे में ............................................................
दस हाथ बाली मैया , कते के बचेलें 
हमरा बेर में जननी नजरी फेर लेलें 
गे में एक बेर फेर अपना करेजा स लगा ले 
गे में .........................................................
डेगे डेगे दुनियां हमरा, ठोकर मरईये
आंखी स नोर झहरे, रोकलो ने जाईए 
गे में टुटल आनंद के तों आश फेर बन्हा दे 
गे में ........................................................
रचना कर आनंद झा 
नोट :कृपया एही कविता के कोनो अंश या कविता हमरा स बिना पूछने उपयोग  नै करी अन्यथा क़ानूनी समाश्या के झेले पारी सके अछि