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रविवार, 8 जुलाई 2012

नारिये,नारिक संतापक कारण छथि

जौं सोचि-विचारि निष्पक्ष मोन सँ मानथि
आ घुमा फिरा क सब तथ्य के देखथि 
त पैयती एहि कटु सच के मुंह बाबति
जे नारिये,नारिक संतापक कारण छथि

कतहूँ सासु त दियादिनी कत्तहूँ
कतहूँ भाउज त ननैद कत्तहूँ
जखने कनिको जे अवसर पाबथि
सब मिलि नवकनियाँ  के दबाबथि 

कनियाँक आंखि छोट आ नाक मोट 
घरक नारिये एहि सब पर करथि चोट
नहिं पुरुष के अहि सब सँ मतलब 
भोर-साँझ बस नारिये खोजति खोट

अहि विवाह में ई चाहि आ एतेक दहेज़ गनेबई
कनिया के त चारि बहिन बाप कोना द पैतई 
जौं सासुर में सार नै त सासुर के मोजर की
अप्पन नईहर खूब पियरगर दोसर जिबय-मरई 

हे मिथिलानी! छोडू ई सब आ बदलू अपना के
नारी भ क नहि कारण बनू नारी यातना के
अपना पर जे बीतल से सहलहूँ राखि भरोस   
मुदा तकर बदला नै तोडू ककरो सपना के

राजीव रंजन मिश्र 

गामक ओ भंगिमा

लहलहाईत खेत आ,
खरिहानक ओ रंगिमा!
ओ मनोरम दृश्य,
आ सूरजक ओ लालिमा!
मोन के लोभा जाईत अछि ,
हमर गामक ओ भंगिमा!!

चारू तरफ खिलखिलाईत,
मदमस्त फूलक ओ छटा!
ताजगी समां के दईत,
मेघक ओ कारी घटा!  
मोन के  दईत अछि रमा,
हमर गामक ओ भंगिमा!!

चिंता स कोसों दूर,
आ प्रपंचक नै कोनो चिन्ह अछि,
शहरक प्रदूषित हवा सँ,
सब तरहे ओ भिन्न अछि!
देह में फुर्ती  दईत अछि जमा,
हमर गामक ओ भंगिमा!!

प्रीतक उताहुल लोक आ,
वात्सल्य हुनक नेह केर!
मोन के करैत अछि विह्वल,
अमोल भेंट हुनक स्नेह केर!
अछि जीवय के सदिखन प्रेरणा,
हमर गामक ओ भंगिमा!!

राजीव रंजन मिश्र 

आगु डेग बढाबी

आयल छी अवधारि क,किछु करबाक टा अछि!
रोडा त बड्ड अछि मुदा,नहि घबरैबाक अछि!!
संग जौं रहल सबहक,भ जैबे टा करतय!
मोन बेर-बेर कहति अछि,ई होयबे टा करतय!!

नहि जानि किएक, बड्ड असमंजस में परल छी!
कतय सँ आर कोना,कथी शुरू करी हम!!
आबु सब मिल बैसी,आर करी पुनर्विचार!
नव स्फूर्ति आर तेज़क,होबै पुनीत संचार!!

गत काल्हि तक जे कयलौं,ठीके छल सब ओहो!
जुनि परी अहि प्रपंच में,ई किएक,ओना किएक भेल!!
जे भेल,जे कयलौ सब ठीक,आगु डेग बढाबी!
दृढ संकल्पित भ फेर सँ,जन-गन के संग लाबी!!
संग्रामी अभिनन्दन के संगहि,संग्रामी एक शपथ ली!
पूर्वाग्रह के छोरि,निष्कपट भ,आबु किछु काज करी!!
किछु बदली हम सब,किछु समय बदलतय,आ सबटा भ जेतय!
मोन बेर-बेर कहति अछि,ई होयबे टा करतय!!
---राजीव रंजन मिश्रा

आश जे लागल अछि

संतप्त धरातल अछि  
दुष्कृति स पाटल अछि 
मनुख बिसारि स्वरुप 
अनेड़ो फाटल अछि 
तइयो नै जानि किया 
ई मोन त पागल अछि
बदलत ई सब एक दिन 
ई आश जे लागल अछि

निःशब्द ई धरती अछि 
खेत पथार जे परती अछि 
बिलटल उपजा बारी
रौदी जे छायल अछि 
तइयो नै जानि किया 
ई मोन त पागल अछि
उपजत  ई सब एक दिन 
ई आश जे लागल अछि

गाछ बृक्ष मूड़झायल अछि 
बारी झाड़ी भकुआयल अछि
देख मनुख केर चालि-प्रकृति 
विधनो के मोन घायल अछि 
तइयो नै जानि किया 
ई मोन त पागल अछि
पलटत ई सब एक दिन 
ई आश जे लागल अछि

आशान्वित छी सदिखन
सम्हरत ई जनजीवन 
रहला जौं दैव सहाय
पुरत सब आश फूलाय
विस्वास त जागल अछि 
तैं मोन त पागल अछि
सुधरत ई सब एक दिन 
ई आश त लागल अछि

राजीव रंजन मिश्र 

मंगलवार, 26 जून 2012

कविता - नहि नारि बिना कल्याण

नारी अपनेके पाओल,कै रूप आ बानगी में!
देखल कै रूप अहाँ केर,अहि छोट छिन जिन्नगी में!

पहिल रूप माय केर देखल,त्याग आ अटूट स्नेह केर!
भेटल निशिदिन एकहिं टा,मूरत निश्छल नेह केर!!

भेटल दोसर रूप बहिन केर,बिना आस किछु पाबय के!
संग रहथि बा दूर जाय क,सब दिन संबंध निभाबय के!!

फेर ऐली भार्या बनि कै,सदिखन प्रेम-सुधा बरसाबय लेल!
बिना चाह अपना लेल कोनो,घर-संसार चलाबय लेल!!

तकर बाद बेटी बनि ऐली,सुन्न आँगन-द्वारि चहकाबय लेल!
सब रूपे सम्हारि जीवन के,चलि गेली सासुर गमकाबय लेल!!

भेटल आरो रूप जतेक भी,सेहो छल,बस त्याग आर ममता केर!
मुदा नहिं जानि,कतौ नहि देखल,जीवन अधिकार आ समता केर!!

नहि जानि मोन ई खिन्न रहति अछि,देखि आब ई कत्लेआम!
आबु ज्ञानी भ सोची-समझी आ ली मोन सँ ई शपथ संज्ञान!! 

नारि बिना नहि मान पुरुष केर,नारि थिक पुरुषार्थक शान!
बंद करी कन्या भ्रूण-हत्या,नहि नारि बिना कल्याण!!


राजीव रंजन मिश्र

सोमवार, 25 जून 2012

कविता - तस्वीर बदलबा के अछि


सरल भाव संचेतन मोन में,
फुटि रहल अछि  चिनगारी!
आंखि सुन्न भय देखि रहल अछि ,
मरजादा आर हया केर लाचारी!
मोन में दृढ संकल्पित भ कय,
तस्वीर बदलबा के  अछि !
नहि चाही आब ओ समाज,
जाहि में नारी कानति होईति!
जग में सुन्नर रूप दया केर,
स्नेहपूर्ण आ दुखियारी !
ममता केर दरिया सन बहि क,
किया सुखायल होइथि नारी!
निश्चल भ मानी एहि अटल सत्य के,
नारि सकल जगतक सृजनकारी!
तिरस्कृत,अपमानित आ प्रतारित भ,
लेती रूप संहारकारी!
बदलल दुनिया आ सोच बदलि गेल,
पुरुशहूँ टा जरुर बदलतय!
नारियो सबतरि सम्मानित होइथी,
हुन्कहूँ दशा सुधरते!
पर ध्यान रहै माता आ बहिन,
बदलै नहि नारि सुलभ लज्जा आ चिर-मर्यादित नारी!
बदलल जुग केर एहि परिपाटी में,ई जुग पुरान सच रहै जारी!
---राजीव रंजन मिश्र