जौं सोचि-विचारि निष्पक्ष मोन सँ मानथि
आ घुमा फिरा क सब तथ्य के देखथि
त पैयती एहि कटु सच के मुंह बाबति
जे नारिये,नारिक संतापक कारण छथि
कतहूँ सासु त दियादिनी कत्तहूँ
कतहूँ भाउज त ननैद कत्तहूँ
जखने कनिको जे अवसर पाबथि
सब मिलि नवकनियाँ के दबाबथि
कनियाँक आंखि छोट आ नाक मोट
घरक नारिये एहि सब पर करथि चोट
नहिं पुरुष के अहि सब सँ मतलब
भोर-साँझ बस नारिये खोजति खोट
अहि विवाह में ई चाहि आ एतेक दहेज़ गनेबई
कनिया के त चारि बहिन बाप कोना द पैतई
जौं सासुर में सार नै त सासुर के मोजर की
अप्पन नईहर खूब पियरगर दोसर जिबय-मरई
हे मिथिलानी! छोडू ई सब आ बदलू अपना के
नारी भ क नहि कारण बनू नारी यातना के
अपना पर जे बीतल से सहलहूँ राखि भरोस
मुदा तकर बदला नै तोडू ककरो सपना के
राजीव रंजन मिश्र
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