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शनिवार, 7 जुलाई 2012

गजल

जँ कहीयो हमरा प्रेम केलहुँ तँ ओकर सप्पत मानियो  जाउ 
कुटि-कुटि कँ हम प्रेम केने छी हमर मनोरथ बुझियो जाउ 

सभ तरहे हम अहीँ केँ बुझलौं अपन अहाँ केँ मानलौं हम 
मोनक हाल बनल की हमर आबि  कनीक अहाँ सुनियो जाउ 

छन-छन हमर बीतैए कोना कँ बिन अहाँक दुख बुझत केँ 
नामे केँ हम जीबैत छी हमर जीवन केँ मुइल बुझियो जाउ 

हाड माँस गलि गेल हमर सभटा प्राण बचा कए रखने छी 
सहि नै सकै छी विरह आगि 'मनु' घुरि अहाँ कनी आबियो जाउ 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२४)
जगदानन्द झा 'मनु'  

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