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शनिवार, 26 नवंबर 2011

हमरा मिथिला राज चाही

भीख नहि अधिकार चाहीहमरा मिथिला राज चाही 
जे हमर अछि खूनमे    खूनक अधिकार चाही 

जनक वाचस्पतिकेँ पुत्र हमहमर चुप्पीकेँ नै किछु आओर बुझू
शांतचित्त हम समुद्र सन,  हमर क्रोधकेँ सोनित चाही 

सिंह सन हम बलवान रहितो,   मेघ सन हम शांत छी 
 जुनि बिसरी ऊधियाइत मेघकेँमुठ्ठीमे संसार चाही

जाहि कोखिसँ सीता छथि जनमलओहि कोखिक संतान छी 
बाँहिमे प्रज्वलित अछि अग्णि,  बस एकटा संकेत चाही 

भूखसँ व्याकुल छी,   मुदा उठाएब नहि फेकल टुकड़ी 
कर्ण बनि जे नहि भेटल ममता केर अधिकार चाही

माए मैथिली रहती किएक,  निसहाय एना एतेक दिन 
होम करे जे तन मन अप्पन 'मनु' लव कुश सन संतान चाही
जगदानन्द झा 'मनु'

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