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सोमवार, 28 नवंबर 2011

गजल (१), जगदानन्द झा 'मनु'


सुगँध सँ सराबोर सुगन्धित सुंदर सजनी सुगँधा
आबि हमर ह्रदय बसली अदभुत सुंदरी  सुगँधा 

जिनक सुगँध चहुदिस नभ-थल कए कण-कण में 
हमर रोम-रोम में  वसल छथि प्राणेश्वरी  सुगँधा 

सुर केँ श्याम जएना  राधाक नटवर मुरली वजैया
ओ छथि समाएल हमर श्वाँस-श्वाँस मे सगरी सुगँधा

जिनक निसाँ   में रचलहुँ हम सुर-सुगन्धित  सुगँधा 
ओ छथि हमर ह्रदय केँ रानी प्राण में बसली सुगँधा 

ध्यानमें मानमें जिनकर आनमें अर्पित अछि 'सुगँधा'
भूल हुए तँ मानियों  जाएब 'मनु' कए  सजनी सुगँधा

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२१) 
जगदानन्द झा 'मनु'

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