की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

मंगलवार, 26 जून 2012

कविता - नहि नारि बिना कल्याण

नारी अपनेके पाओल,कै रूप आ बानगी में!
देखल कै रूप अहाँ केर,अहि छोट छिन जिन्नगी में!

पहिल रूप माय केर देखल,त्याग आ अटूट स्नेह केर!
भेटल निशिदिन एकहिं टा,मूरत निश्छल नेह केर!!

भेटल दोसर रूप बहिन केर,बिना आस किछु पाबय के!
संग रहथि बा दूर जाय क,सब दिन संबंध निभाबय के!!

फेर ऐली भार्या बनि कै,सदिखन प्रेम-सुधा बरसाबय लेल!
बिना चाह अपना लेल कोनो,घर-संसार चलाबय लेल!!

तकर बाद बेटी बनि ऐली,सुन्न आँगन-द्वारि चहकाबय लेल!
सब रूपे सम्हारि जीवन के,चलि गेली सासुर गमकाबय लेल!!

भेटल आरो रूप जतेक भी,सेहो छल,बस त्याग आर ममता केर!
मुदा नहिं जानि,कतौ नहि देखल,जीवन अधिकार आ समता केर!!

नहि जानि मोन ई खिन्न रहति अछि,देखि आब ई कत्लेआम!
आबु ज्ञानी भ सोची-समझी आ ली मोन सँ ई शपथ संज्ञान!! 

नारि बिना नहि मान पुरुष केर,नारि थिक पुरुषार्थक शान!
बंद करी कन्या भ्रूण-हत्या,नहि नारि बिना कल्याण!!


राजीव रंजन मिश्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें