मारी माछ नहि ऊपछी खत्ता
भरि समाज घोडनकेँ छत्ता
परचट्ट बनल जनता छी
खाइ छी गरदनिपर कत्ता
काँकोड़ बिएल काँकोड़े खए
भए गेल देशक लत्ता-लत्ता
सगरो नाँघल जाइत अछि
छन छन मरीयादाकेँ हत्ता
रहब भरोसे कतेक दिन
भेटे एक दिन हमरो भत्ता
(वर्ण-११)
जगदानन्द झा 'मनु'
बहुत नीक गजल ।
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद, डॉ॰ शशिधर कुमर जी........
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