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मंगलवार, 5 जून 2012

गजल

सोना दहेल जाइए जुनि काँटी केँ पकरू 
छोरि अपन भाषा नहि खराँटी केँ पकरू 

दोसर  घर धेने भेटत नहि ओ सनेह 
छोरि आनक बोझ अपन आँटी केँ पकरू  

आदी काल सँ अपन शिक्षा लेने विश्व अछि 
नवीनता केँ धार में नहि काँटी केँ  पकरू   

संपन्न हमर संस्कृति मधुर भाषा अछि 
लात मारि टल्हा केँ अपन खाँटी केँ पकरू 

छोरु दिल्ली मुंबई घुरि आऊ अपन घ 'र
आब  दरभंगा मधुबनी  राँटी केँ पकरू 

(वर्ण-१६)
जगदानन्द झा 'मनु'


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