की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। संपर्क करी मो०/ वाट्सएप न० +91 92124 61006

शनिवार, 23 जून 2012

गजल




देख  मुहँ मूंगबा बहुतो बटाई छै
नाम ककरो गरीबक नै सुहाई छै

भेट निर्धन कए नै भेटलै मिसियो
पेट भरि जाइ सभ  दीनक दबाई छै

मीठ भाषण बरख पाँचे  कते दै छै
जीतकेँ बाद नेतोसभ  नुकाई छै

घूस खा खा  कs बनलै भोकना पारा
आन दमड़ीसँ चमड़ी बड चबाई छै

भ्रष्ट नेता घुमै    बीएमडब्लूमे
एखनो हक गरीबक 'मनु' बटाई छै

(२१२२  १२२२ १२२२, बहरे-मुशाकिल )
जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल संख्या -५८

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें