एकादशाक भोज, गामक डीलर साब केँ बाबूक एकादशा | डील-डोल सँ सम्पूर्ण जेबाड केँ नोतल गेल | दसो गामक लोक सभ कियो बैल गाड़ी सँ कियो साईकिल सँ कियो पएरे, साँझक छ ए ' बजे सँ लोकक करमान एनाइ शुरू | नोथारी सब आबि-आबि क ' बैसति | बैसअ केँ पूर्ण व्यबस्था | करीब पेंतीस हाथक त ' डीलर साब केँ दलाने छनि आ आबैबला आगुन्तक केँ धियान राखि दलानक आगाँक बारी-झारी केँ साफ सुथरा कए क ' एहेन सामियाना लागल जे ओहि में पाँच सए लोग एक संगे बैस सकैत अछि | व्यबस्थाक कोनो कमी नहि | भोजन सँ पूर्ब सब व्यबस्था देखि रमणजी स्वं केँ रोकि नहि सकला आ अपन लग में बैसल सुबोधजी सँ बजला -
"कीयौ दोस्त डीलर त ' कोनो तरहक कमी नहि छोरलनि, एतेकटा सामियाना, एतेक लोक केँ नोतनाइ........."
सुबोध - "हाँ"
रमण - "जबाड नोतनाइ कोनो मामूली गप्प छैक ओहू में एतेक डील-डोल सँ, खाजा,मूँगबा , पेन्तोआ, रसगुल्ला आ सभ नोथारी केँ एक-एकटा लोटा सेहो |"
सुबोध - "सुनलहुँ त ' हमहुँ इहे सभ | "
रमण - " कि अपने की कहै छीयैक, सभटा कतेक खर्चा डीलर केँ लागि जेतैन |"
सुबोध - "हम कोना कहु, हम त ' नहि कहियो जबाड खुवेलहुँ |"
रमण - "छोरु अहाँ केँ त ' सदिखन मुह फुलले रहैए, ओना हमारा हिसाबे आठ-दस लाख रुपैया त ' लगबे करतैन |"
सुबोध - "आठ-दस लाख रुपैया डीलर केँ लेल कोन भारी ओनाहितो हुनकर बरखो केँ लौलसा छ्लैंह जे कहिया बाबू मरथि आ ओ दिन आबि गेलैंह त ' खुश त ' हेबे करता, ख़ुशी में आठ लाख की आ दस लाख की..... |"
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जगदानन्द झा 'मनु'
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