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गुरुवार, 5 जुलाई 2012

"ई नोर छै गरीबी के" - विहनि कथा


दक्षिण-पूब भर सँ अटूट मेघ घेरैत देखि बुधनी पूवैर बाधक एकपेरिया बाट पर नमहर-नमहर डेग झटकारने घर दिश विदा भेल. माथ पर घासक छिट्टा, कांख तऽर थोड़ सुखैल राहटक जारैन आ खोइंछ में नुका धेने छल सात-आठ टा रस्फट्टू आम जे अबैत काल बाट में बिछने छल अल्हुआ वला खेत लगका कलकतिया आमक गाछ तर सँ.. गाम परहक चिंता जान खेने जा रहल छलै. सात वरखक बेटा बंटी के घरे पर छोड़ि आयल छल. ओना ओ तऽ छाल छोड़ेने छल बाध अबै लेल मुदा रौद तेहन ने चंडाल उगल छलैक जे बुधनी के मोन नहि मानलकै आ ओकरा सुगिया काकी अंगना छोडि आयल छल. बुधनी के सभ सँ बेशी चिंता अहि गप्पक छलै जे जों ओकरा घर पर पहुंचै सँ पहिने वरखा शुरू भ गेलै तऽ जुलुम भऽ जेतै. चिपरी सभ बाहरे में सुखाइत छलै आ अंगना में खुद्दी सेहो पसारल छलै...आ हाँ चार पर बिरियो तऽ देने छलै बना कऽ सुखाई लेल, सभटा चौपट भऽ जेतै.. विचारक अहि उथल-पुथल में अगुताइल भागल जैत छल घर दिश.

घर पहुँचते देरी छिट्टा अंगना में पटकि पहिने बंटी के शोर पारलक. ता धरि तऽ एकदम गुप्प अन्हार भऽ गेल छलैक आ जोड़-जोड़ सँ बिजलोका लोकय लागल छलै. संगहिं मेघ सेहो ढन-ढन गरज लागल छलै. बुधनी हडबडा कऽ सभटा काज करय लागल. आ बंटी... ओहो पाछू कियैक रहत..! ओहो छोटकी पथिया में चिपरी समेट कऽ उठाब लागल. कने कालक बाद खूब जोड़ सँ वरखा शुरू भऽ गेलै. बुधनी बंटी के लऽ कऽ दौड़ कऽ घर दिश भागल...मुदा ताहि सँ की..? घर की कोनो अंगना सँ नीक छलै..! सड़ल खऽर... मोनो नहि जेऽ कैऽ वरख भऽ गेल छलै छड़वेला. कोरो-बाती सेहो सड़ल-गलल. ओहिना टुक-टुक मेघ देखाइत...! राति कऽ बंटी घरे में बैसले-बैसल चंदा मामा सँ बतिया लैत छल आ तरेगन सँ खूब लुका-छिपी खेलैत छल. सौंसे घर में गर-गर पाइन चुबैत. कनिए काल में घर पाइन सँ भरि कऽ डबरा भऽ गेल. बुधनी छिपिया लऽ पाइन उपछ लागल. ओ पाइन उपछैत-उपछैत अप्सियांत भेल छल. आ बंटी.... ओकरा लेखे केहनो सन नहि....आ रहबे कियैक करतैक...? ओ तऽ कागतक नाह बना घर में अई कोन सँ ओई कोन धरि बहा कऽ आनंद सँ विभोर भऽ रहल छल.

कने कालक पश्चात जहन खेलाइत-खेलाइत बंटी थाकि गेल तऽ नाह के ओहिना पाइने में हेलैत छोडि बुधनी के कोरा में जा बैसल आ बाजल माय गे भूख लागल अछि, किछु खाई लेल दे ने...! बुधनी एक दू बेर तऽ अन्ठेलक मुदा जहन बंटी छाल छोड़बय लागल तऽ बुधनी चिनवार पर बासन सभ के उनटा-पुन्टा कऽ देख लागल. किछु नहि भेटलैक...किछु रहतैक तहन ने भेटतै. मुदा बंटी कियैक मानत..आ फेर जे माइन गेल से नन्ने की..? बुधनी अकबकैल ओकर मूंह तकैत छल तखने कोठिक गोड़ा पर राखल मरुआ रोटिक एकटा टुकड़ी पर ओकर नजरि गेलै. बुधनी मोन पारय लागल जे कहिया के छियैक.... हाँ मोन पड़ल परसुए भोर में तऽ बनने छलियैक.. बुधनी ओ मरुआ रोटी पर थोड नून आ सुखायल अचार धऽ बंटी के दऽ देलकै. बंटी मगन भऽ खाय लागल. नेनाक चंचल मोन तऽ देखू…खाइत-खाइत बंटी बाजल माय गेऽ दू टुकड़ी पियाउज दे ने..! बुधनी सौंसे घर ढुरलक तऽ आधा टा पियाउज भेटलै.. ओ पियाउज सोहि बंटी के देबय लागल....!

बुधनिक आंखि में नोर भरि गेलै. बंटी माय के मुंह दिश तकलक तऽ बाजल…की भेलऊ माय कियैक कने छिही. नहि तऽ कहाँ कनैत छी हम. नहि-नहि फेर नोर कियैक बहि रहल छौ. मोन खराब छौ की.. माथ दुखाई छौ, हम जाइंत दियौ...? नहि बउआ किछु नहि भेलै हमरा. हमरा कियैक माथ दुखैत…? ई सुनि बंटी चहकि कऽ बाजल... ओहो आब बुझलियौ तों पियाउज कटलहिन्ह हैं तैं तोरा आंखि सँ नोर बहैत छौ - छैऽ नेऽ..? बुधनी मोने-मोन सोचे लागल जे बउया तोड़ा कोना कहियौ जेऽ ई नोर माथ दुखेबाक कारणे आ की पियाउज कटबाक कारणे नहि बहि रहल अछि.... इ नोर...इ नोर तऽ गरीबी केर छैक. मुदा बुधनी सभटा दर्द अपना मोन में समेटने विरोगे लोल कोंचियाबैत आ जबरदस्तिये कनी मुस्कियैत बाजल "हाँ बउया पियाउज कटलियै तहि दुआरे नोर बहय लागल...! बंटी मायक ई गप्प सुनि ठिठिया कऽ हंसल आ मरुआ-रोटी-नून-अचार पियाउजक टुकड़ी संगे खाय में मगन भऽ गेल. गाल पर नोरक सुखायल धार नेने बुधनी के ओकर नेनपनक सत्य आ सुन्दर छवि देखि अजीब सन संतोषक अनूभूति भऽ रहल छलय..!!!

***इति श्री***

< पंकज चौधरी (नवलश्री) >
< ०५.०७.२०१२ >

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

विहनि कथा


विहनि कथा
कपारक लिखल
शर्माजीक आफिस शनि आओर रवि सप्ताह मे दू दिन बन्न रहै छैन्हि। आइ शनि छल। आफिस बन्न छल आ शर्माजी दरबज्जा पर बैसल छलाह। तावत एकटा भिखमंगा दरबज्जा पर आएल आ बाजल- "मालिक दस टाका दियौ। बड्ड भूख लागलए।" शर्माजी बजलाह- "लाज नै होइ छौ। हाथ पएर दुरूस्त छौ। भीख माँगै छैं। छी छी छी।" भिखमंगा बाजल- "यौ मालिक, पाई नै देबाक हुए तँ नै दियऽ, एना दुर्दशा किएक करै छी। हम जाइ छी।" ओकरा गेलाक बाद शर्माजी खूब बडबडयला। देशक खराप स्थित सँ लऽ कऽ भिखमंगाक अधिकताक कारण आ नै जानि की की, सब विषय पर अपन मुख्य श्रोता कनियाँ केँ सुनबैत रहलाह।
दुपहर मे भोजन कएलाक उपरान्त आराम करै छला की कियो गेट ठकठकाबऽ लगलै। निकलि कऽ देखैत छथि एकटा त्रिपुण्ड धारी बबाजी ठाढ छल। हिनका देखैत ओ बबाजी बाजऽ लागल- "जय हो जजमान। दरिभंगा मे एकटा यज्ञक आयोजन अछि। अपन सहयोगक राशि पाँच सय टाका दऽ दियौक।" शर्माजी- "हम किया देब?" बबाजी- "राम राम एना नै बाजी। पुण्यक भागी बनू। फलाँ बाबू सेहो पाँच सय देलखिन्ह। अहूँ पुण्यक भागी लेल टाका दियौ।" शर्मा जी- "हमरा पुण्य नै चाही। हम नरक जाइ चाहै छी। अहाँ केँ कोनो दिक्कत? बडका ने एला हमरा पुण्य दियाबैबला।" ओ बबाजी बूझि गेल जे किछु नै भेंटत आ ओतय सँ पडा गेल।
साँझ मे शर्माजी लाउन मे टहलै छलाह। सामने सँ तीन टा खद्दरधारी ढुकल आ हुनका प्रणाम कऽ कहलक- "विधान सभाक चुनाव छैक। दिल्ली सँ फलाँ बाबू एकटा रैली निकालबाक लेल आबि रहल छथि। ऐ मे बड्ड खरचा छैक। अपने सँ निवेदन जे दस हजार टाकाक सहयोग करियौक।" शर्माजी बिदकैत बाजलाह- "एहि लाउन मे टाकाक एकटा गाछ छै। अहाँ सब ओहि मे सँ टाका झारि लियऽ।" एकटा खद्दरधारी बाजल- "हम सब मजाक नै कऽ रहल छी आ आइ कोनो बहन्ना नै चलत। टाका दियौ अहाँ। अहाँक बूझल अछि ने जे हमरे सभक पार्टीक सरकार छै। अहाँक बदली तेहन ठाम भऽ जायत जे माथ धुनबाक अलावा कोनो काज नै रहत।" शर्माजी गरमाइत बाजलाह- "ठीक छै हम माथ धुनबा लेल तैयार छी। अहाँ सब जाउ आ बदली करबा दियऽ। निकलै छी की पुलिस बजाबी।" खद्दरधारी सब धमकी दैत ओतय सँ भागि गेल।
रातिक तेसर पहर छल। शर्माजी निसभेर सुतल छलाह। एकाएक हुनकर निन्न ठकठक आवाज पर उचटि गेलैन्हि। कनियाँ केँ उठा कऽ कहलखिन्ह जे कियो दरबज्जाक गेट तोडि रहल अछि। दुनू परानी डरे ओछाओन मे दुबकि गेलैथ। तावत गेट टूटबाक आवाज भेलै आ टूटलहा गेट दऽ कऽ सात टा मोस्चंड शर्माजी केँ गरियाबैत भीतर ढुकि गेलै। सब अपन मूँह गमछी सँ लपेटने छल। एकटाक हाथ मे नलकटुआ सेहो छलै। बाकी दराती, कुरहरि, कचिया आ लाठी रखने छल। एकटा लाठी बला आबि कऽ हुनका जोरगर लाठी पीठ पर दैत कहलकन्हि- "सार, सबटा टाका आ गहना निकालि कऽ सामने राख। नै तँ परान लैत देरी नै लगतौ।" शर्माजी गोंगयाइत बजलाह- "हमरा नै मारै जाउ। हम हार्टक पेशेन्ट छी। इ लियऽ चाबी आ आलमीरा मे सँ सब लऽ जाउ।" ओ सब पूरा घर हसौथि लेलक। पचास हजार टाका आ दस भरि गहना भेंटलै। फेर हिनकर घेंट धरैत डकूबाक सरदार बाजल- "तौं तँ परम कंजूस थीकैं। कतौ खरचो तक नै करै छैं। एतबी टाका छौ। सत बाज, नै तँ नलकटुआ मूँह मे ढुका कऽ फायर कऽ देबौ।" इ कहैत ओ नलकटुआ हुनकर मूँह मे ढुकेलक। ओ थर थर काँपैत बाजऽ लगलाह लैट्रिनक उपरका दूछत्ती मे दू लाख टाका आ बीस भरि गहना राखल छै। लऽ लियऽ आ हमरा छोडि दियऽ। सरदार दू जोरगर थापर दैत कहलकैन्हि आब लैन पर एले ने, आर कतऽ छौ बाज। शर्माजी किरिया खाइत बजलाह आब किछो नै छै बाबू, छोडि दियऽ हमरा। डकैत सब सबटा सामान समटि कऽ विदा भऽ गेल। थोडेक कालक बाद हिम्मति कऽ कऽ ओ चिचियाबऽ लगलाह- "बचाबू, बचाबू डकूबा........।" अडोसी पडोसी दौगल एलथि। कियो पुलिस बजा लेलक। पुलिस खानापूर्ति कऽ कऽ चारि बजे भोरबा मे चलि गेलै। शर्माजी अपन माथ पीटैत बाजै छलाह- "आइ भोरे सँ शनिक कुदृष्टि पडि गेल छल। कतेको सँ लुटाई सँ बचलौं, मुदा कपारक लिखल छल लुटेनाई से लुटाइये गेलौं।"

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

विहनि कथा-नव अंशु

विहनि कथा-नव अंशु
प्रभात बाबू माँजल संगीतकार-गायक आ शिवाजीनगर काँलेजक संगीत विभागक प्रधान प्रोफेसर छलखिन ।एक बेर पटना सँ प्रोग्राम क' ट्रेन सँ गाम आबैत छलाह ।भरि रातिक झमारल तेँए आँखि बंद केने सुतबाक अथक कोशिश केलनि मुदा हो-हल्ला सँ नीन कोसोँ दूर भागि गेल ।तखने एकटा नारी कंठ कोलाहल के चिरैत हुनक कान के स्पर्श केलकै ,आरोह-अवरोह के फूल सँ सजल सप्त-सुरी माला मे गजबे आकर्षण छलै । प्रभात बाबू आँखि खोलि चारू कात हियासलाह मुदा केउ देखाइ नै देलकै ,मुदा आभास भेलै जे ओ कोकिल-कंठ लग आबि रहल छै ।कने कालक बाद लागलेन जे ओ बगल मे आबि गेल छै ,आंखि खोललनि त' नीच्चा 10-12 वर्षक बच्ची झारू लेने फर्श साफ करैत आ लोक सब के एक टकिया दैत देखलनि ।प्रभात बाबू ओकरा लग बजा नाम-पता पुछलनि ,हुनका बूझहा गेलै जे ओहि अनाथ मे शारदा बसल छथिन ।ओकरा अपना संग चलबाक लेल आ नीक स्कुल मे नाम लिखा देबाक बात कहलनि , ओ तैयार भ' गेल ।अपना लग बैसा प्रभात बाबू गीत सुनैत रहलखिन ,ओकर हर-एक स्वर संग दुनूक दिल सँ निकलैत नव किरण आँखिक बाटे निकलि सगरो संसार के प्रकाशित क' रहल छल ।आशक नव अंशु पिछला जीवनक अन्हार के इजोर क' देने छल ।
अमित मिश्र