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मंगलवार, 21 जून 2016

गजल

हम तँ ढोलक छी सगर बाजिते  रहलहुँ 

बात सुनलक नहि कियो पीबिते रहलहुँ

 

प्रेम मोनक बंद  रहिगेल मोनेमे

गप्प कोना ई कहब सोचिते रहलहुँ

 

छल जकर सभ आश छोरि चलि देलक

दर्द लेने मोनमे   जीविते रहलहुँ

 

फाड़ि देखायब करेजा  तँ मानत के

तेँ अपन टूटल हिया जोड़िते  रहलहुँ

 

बंद भेलै ई शराबो करत की ‘मनु’

आँखि पथने गाममे ताकिते रहलहुँ

 

(बहरे कलीब, मात्राक्रम - 2122-2122-1222)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 


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