भीख नहि अधिकार चाही, हमरा मिथिला राज चाही
जे हमर अछि खूनमे ओ खूनक अधिकार चाही
जनक वाचस्पतिकेँ पुत्र हम, हमर चुप्पीकेँ नै किछु आओर बुझू
शांतचित्त हम समुद्र सन, हमर क्रोधकेँ सोनित चाही
सिंह सन हम बलवान रहितो, मेघ सन हम शांत छी
ई जुनि बिसरी ऊधियाइत मेघकेँ, मुठ्ठीमे संसार चाही
जाहि कोखिसँ सीता छथि जनमल, ओहि कोखिक संतान छी
बाँहिमे प्रज्वलित अछि अग्णि, बस एकटा संकेत चाही
भूखसँ व्याकुल छी, मुदा उठाएब नहि फेकल टुकड़ी
कर्ण बनि जे नहि भेटल, ओ ममता केर अधिकार चाही
माए मैथिली रहती किएक, निसहाय एना एतेक दिन
होम करे जे तन मन अप्पन, 'मनु' लव कुश सन संतान चाही
@ जगदानन्द झा 'मनु'
neek kavita badhai
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
हटाएंbadd neek kavita
जवाब देंहटाएंNeek parastuti
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