हारिकेँ बाद जीतो त' अबिते छै
रातिकेँ बाद सगरो इजोते छै
दुखक माला जपै छी किए दिन भरि
एहि जगमे घड़ी सुखक बहुते छै
नोर राखू पजारब गजल एहिसँ
किछु पुरनका खड़ेएल रहिते छै
बेंगकेँ जिन्दगी नै इनारे भरि
भादबक बाढ़िमे ओ त जनिते छै
छोरि तकनाइ मुँह हाथ नम्हर करु
किछु पबै लेल 'मनु' दाम लगिते छै
(मात्रा क्रम ; २१२-२१२-२१२-२२)
जगदानन्द झा 'मनु
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