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मंगलवार, 21 जून 2016

मुँहझौँसा

“गै दैया ! एतेक आँखि किएक फूलल छौ ? लगैए राति भरि पहुना सुतए नहि देलकौ।”
“छोर, मुँह झौँसा किएक नहि सुतए देत, अपने तँ ओ बिछानपर परैत मातर कुम्भकरन जकाँ सुति रहल आ हम भरि राति कोरो गनैत बितेलहुँ।”

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