की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

सोमवार, 18 जून 2012

गजल



सभकेँ हम करि सम्मान सभ बुझैत अछि गदहा 
सभकेँ गप्प हम सुनै छी सभ  कहैत अछि गदहा  

सभतरि मचल हाहाकार मनुख खाय  गेल चाडा
भ्रष्टाचार में डूबि  आई  देश चलबैत अछि गदहा 

नवयुवक फँसल भमर में साधू करए कबड्डी 
देखू  गाँधी टोपी पहिर किछ कहबैत अछि गदहा 

भगवा चोला पहिर-पहिर आँखि में झोँकै मिरचाई 
धर्माचार बनल बैसल    धर्म बेचैत अछि गदहा 

जंगल बनल समाज में, सोनित  सँ भिजल धरती 
शेर सगरो पडा गेलै  चैन सँ सूतैत अछि गदहा 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२०)
 जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल  संख्या -५५

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें