की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

सोमवार, 11 जून 2012

गजल


घोड कलियुग घडी केहन आबि गेलै   
एकटा कंस घर घर में  पाबि गेलै  


बनल अछि रक्षके भक्षक आब  सगरो   
विवश जनताक हक सबटा  दाबि गेलै 


अन्न खा ' थाह पेटक किछु नै पएलक  
मालकेँ सगर भूस्सा चुप  चाबि गेलै  



शहर नै गाम आ  घर- घर आब देखू 
पूव देशक हबा में सभ आबि गेलै 


आजु  फेशन कए नव पोसाक  में डुबि
एक गज में अरज देहक पाबि गेलै  


(बहरे असम, मात्रा क्रम- २१२२-१२२२-२१२२)
जगदानन्द झा 'मनु' 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें