की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। संपर्क करी मो०/ वाट्सएप न० +91 92124 61006

शनिवार, 23 जून 2012

गजल

सभ मात-पिता केर शौख-सेहन्ता बौआ करता नाम
मगन जुआनिक माया नगरी बौआ मनसुख राम

छथि बाबू-पित्ती घरक धरणि थम्हने बनि क खाम
संतति कर्म सँ देह नुकौने करम केने अछि बाम

बाबुक अरजल पर में फूटानी माटि लगै नै चाम
जों अपना कन्हा हर पड़ल त जय-जय सीता-राम

अन्तह शोणित सुखा रहल आ घर बहय नै घाम
बबुआनी केर अजब छै सनकी बैरी भ गेल गाम

ईरखे नान्गैर कटबै लै जे तेजलक मिथिला धाम
परदेसक माया ओझरायल घूमि रहल छै झाम

अपना आँगन सोन छोईड़ क अनकर बीछी ताम
घर छोड़ि घुर-मुड़िया खेलक कहिया लागत थाम

मोल बुझय नहि भावक भाषा भाव पूछय नै दाम
चलु रहब माँ मैथिल आँगन नेह बहय जै ठाम

"नवल" निवेदन मैथिल जन सँ छोडू नै मिथिलाम
छै पागक शोभा माथे पर आ चरणहि नीक खराम

----- वर्ण - २० -----
►नवलश्री "पंकज"◄  
गजल संख्या -९

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें