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बुधवार, 11 जनवरी 2012

हास्य कविता- ‎गुलाम छी कनियाँकेँ

‎‎आई हम बता रहल छी हालात इ दुनियाकेँ
कोना कs सुनाबी खिस्सा अपन कनियाँकेँ

दिन भैर खटैत-खटैत सुखी गेल खुन शरीरकेँ
कनियाँ मोटा गेला मात्र एक ब्रिसबेन
फूली कs भेल फुक्का अंग-अंग ओकर शरीरकेँ
आइ हम बता रहल छी हालात इ दुनियाकेँ।

घरके सुप्रिम जज इ बात कोना नै मानी
अपना लेल मधुर मलाई दोसर लेल छुच्छ पानि
दौरैत रहै छी पैदल कोन काज स्कुटरकेँ
आई हम बता रहल छी हालात इ दुनियाकेँ।

नै पान खा सकए छी नै लौँग नै इलायची
कानून जौँ तोड़ब गर्दन पर चलत कैँची
बेलना के माइर खाइ छी होई साफ हम झाड़ू से
आइ हम बता रहल छी हालात इ दुनियाकेँ।

मैडम के जुल्म छै या तकदिर के सितम छै
कोना क' हम बताबी कतेक उदास हम छी
तुफान मे फसल छी आश नै किनाराकेँ
आइ हम बता रहल छी हालात इ दुनियाकेँ।

एकटा हमहीँ नै छी गुलाम कनियाँकेँ
हमरा सन कतेक भाई आओर छै दुनियामे
कहियो लेब " अमित" सहारा बोतल इ जहरकेँ
आइ हम बता रहल छी हालात इ दुनियाकेँ ………


इ कविता सोचसँ लिखल आ काल्पनिक अछि । । हम नीक लिखलौँ की नइ जानी नै । ।अनुभव नै अछि विवाहक जीवनक ।{ अमित मिश्र }

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