अहाँक चमकैत बिजली सँ काया ओई अन्हरिया राती में
आह ! कपार हमहुँ की पएलहुँ मिलल जे छाती छाती में
सुन्नर सलोनी मुह अहाँ केँ कारी घटा घनघोर केशक
होस गबा बैसलौं हम अपन पैस गेल हमर छाती में
बिसरि नै पाबि सुतलो-जगितो ध्यान में सदिखन अहीं केँ
अहाँक कमलिनी सुन्नर आँखि देखलौं जे नशिली राती में
बिधाता बनेला निचैन सँ धरती पर पठबै सँ पहिले
मिलन अहाँ केँ अंग अंग में जे नहि अछि दीप आ बाती में
सुन्नर अहाँ छी सुन्नर अछि काया अंग-अंग सुन्नर अहाँ केँ
नै कहि सकैत छी एहि सँ बेसी अहाँक बर्णन हम पाती में
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२२)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या-१३
आह ! कपार हमहुँ की पएलहुँ मिलल जे छाती छाती में
सुन्नर सलोनी मुह अहाँ केँ कारी घटा घनघोर केशक
होस गबा बैसलौं हम अपन पैस गेल हमर छाती में
बिसरि नै पाबि सुतलो-जगितो ध्यान में सदिखन अहीं केँ
अहाँक कमलिनी सुन्नर आँखि देखलौं जे नशिली राती में
बिधाता बनेला निचैन सँ धरती पर पठबै सँ पहिले
मिलन अहाँ केँ अंग अंग में जे नहि अछि दीप आ बाती में
सुन्नर अहाँ छी सुन्नर अछि काया अंग-अंग सुन्नर अहाँ केँ
नै कहि सकैत छी एहि सँ बेसी अहाँक बर्णन हम पाती में
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२२)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या-१३
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