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शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

श्रम निष्ठा


2सोचलौ हम एक दिन संसार में सैर करू
अपन कल्पना के लहर पर धीरे - धीरे हेलअ लागु
तखने विचार आयल मोन में कल्पना स उपर उठू
अपने चलइते चलइते धरती पर पैर राखु

जखन धरलौ पग हम पृथ्वी पर
किछु अहसाश भेल अहन
ज़िंदगी के चाइर दिन
और , तयो जीवन कहेन ?

अतए नजइर उठेलौ त पेलौं
कृषक श्रम दान क रहल छल
कानी हाथ रुकइ नै छल
एहन मेहनत करैत छल .

आँइख धँसल छलय भीतर
भूखआयल पेट पिचइक रहल छल
पसीना के कंचन बूंद सँ
तन हुनक चमैक रहल छल .

देख क हुनक इ हालत
एक आघात भेल ऐना मोन पर
जीवन पाललक जग के जे
रक्त देखैत ओकर तन पर

किछु पग और चल्लौ आगा
एगो आलीशान भवन ठार छल
श्रमिक के शोषण कैर कैर क
अपना के गर्वित समइझ रहल छल .

कहलक गर्व स ओ ऐना
इ सब हमर कर्म के फल अछि
कयलक ज़िंदगी भइर श्रम ओ
लेकिन तयो निष्फल अछि .

तखन पुछ्लाऊ हम ओकरा स
सुन तोहर कर्म कहेन छऊ
हंइस क बजल ओ ऐना
सबता धन के आइड़ में छुपेल अछि .

सोचलौ हम धन कहेन अछि
जे सब किछु छुपा लैत अछि
पाप के पुण्य और
पुण्य के पाप बना देत अछि .

सोचइत सोचइत गाम क दिश बढ़ल कदम
कि लोग के कहेन अछि भरम
एक दिन अहिना फेर ओहे दिश पग बैढ़ चलल
जतय कृषक और भवन छल मिलल .

देखलौ ओतय हम -----
कृषक मग्न भ काज क रहल छल
पसीना के पोइछ वो हर जोइत रहल छल
दृष्टि गेल भवन पर त बुझ्लाऊ
कि मात्र एकटा खंडहर ओतय ठार छल .

ओ देख क हमरा
ओकर बात के बुझाय में आयल
कि कर्म के अनुसार
आय तू इ फल पेलें
हमरा मुँह स ओय समय
यइ शब्द निकइल गेल
नय ओझ्रयब इ भ्रम - जाल में
नय त इंसान त अतए छलल गेल .

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