लाल-दाई केँ ललना लाले लाल लगैत छथि
लाली अपन माए केँ चोरा क' नुकाबैत छथि
लाली अपन माए केँ चोरा क' नुकाबैत छथि
छैन आँखि में हिनकर काजरक बिजुडिया
माइयो सँ सुन्नर झिलमिल झलकैत छथि
लटकल माथ पर सुन्नर लट हिनकर
देखियौंह चंद्रमा केँ आब ई लजाबैत छथि
सुनि-सुनि बहिना सब हिनकर किलकाडि
कियो खेलाबैत कियो हिनका झुलाबैत छथि
रंग-रूप चाल-चलन सबटा निहाल छैन
मुस्की सँ इ त' अपन 'मनु' केँ लुभाबैत छथि
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१७)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या - ११
बड्ड सुन्दर गजल.गजल लिखवा में अखनतक मैथिल भाई के बड्ड नीक स्थान नै रहलैन हें| ताहि में आहाँ के प्रयास सार्थक कदम होयत|हमर भगवान से कमाना जे आहाँ के गजल से मिथिला के ख्याति प्राप्त होई|
जवाब देंहटाएंआदरणीय भवेंद्र जी
जवाब देंहटाएंप्रोत्शाहन व् एतेक नीक आशीर्वाद हेतु धन्यवाद व् सादर प्रणाम