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गुरुवार, 12 जनवरी 2012

गजल

गजल  संख्या-७

छुपि -छुपि  दिन राति  हम अहाँक छवि निंघारै छी 
एक अहाँ छी की  नइँ हमरा करेजा सँ लगबै छी 


एक दिन पूरा होयत हमरो करेजक कामना 
अहुँ कि याद करब की ककरा सँ नेह लगाबै छी 


एक दिन ओहो एतै जहिया हमर स्नेहिया एबै
तखन अहीँकेँ निंघारब एखन छबि निंघारै छी 


नहि मिलन कए ओ घडी आब अहाँ रोकल करू 
ओ मधुर घडी जल्दी आबे हम इंतजार करै छी 


हमर जे चाहत अछि से सुनायब हम जरुर 
नै रोकने अहाँ हमरा आब कहै सँ रोकी सकै छी 


(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१९)
जगदानन्द झा 'मनु' 

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