कतेक कहू,कहिआ हेतै खतम इ दहेज कहर,
किनको आइग लगेनाइ किनको देनाइ जहर,
बृद् होइते सासु जी किय् इ बिसैर जाइ छथ् एहसास,
काइल वोहो छलथ्हि कनिया आइ बनल छथ् सास्,
ननोइद् नै इ सोचअथ्हि जेहने वो छथ्हि अपन माँ केर प्यारी ,
हुनक घर जे एली भाऊज सेहो छथ्हि अपन माँ के दुलारी ,
इ बात क कहिया बुझ्थिन अहि बातक त रोनाई अछि ,
आई जे भाऊज पर होई छैन काइल हुनको पर होनाई अछि ,
सात फेरा लेलैन जे हमरा संग प्रेमक नगरी बसऊलनि ,
देवता बुझी के जिनका लग एलहूं सेहो कसाई भा गेलनि,
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