हम छी मिथिला धाम के ना,
हम छी मिथिला धाम के ना,
नहि दरभंगा नहि मधुबनी,
नहि छी हम मधेश के,
नहि एहि पारक नहि ओहि पारक,
बाबा जनक केर गाम के ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।
बाबा जनक के बागक फुल,
जुनि करू अहाँ कुनो गुरुतर भूल,
अरहुल, चम्पाऔर चमेली,
तीरा गेंदा कियो छईथ बेली,
एहि बागक सब श्रिंगार गे ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।
नहि भंडारिसम नहि शिवरामक,
नहि नवटोलक नहि कोनो गामक,
पूत-सपूत भेलहू मिथिला के,
मंडन मिश्रक गाम के ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।
नहि भागलपुर नहि सहरसा,
नहि छी हम कटिहारक के,
ई सब मिथिला गामक टोल,
सुन्नर मैथिली बोल गे ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।
जाति-पाति के नहि अछि बंधन,
भातृप्रेम के भेटय संरक्षण,
नारी छईथ जतय पूजल जाइत,
वैह सीता केर गाम के ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।
खट्टर काका के तर्क “अमित” अछि,
विद्यापति के गीत यौ,
चंदा, लाललिखल रामायण,
सुग्गा सुनाबईथ वेद यौ ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।
रचनाकार--अमितमोहन झा
ग्राम-भंडारिसम(वाणेश्वरी स्थान),मनीगाछी, दरभंगा, बिहार,भारत।
नोट..... महाशय एवंमहाशया से हमर ई विनम्र निवेदन अछि जे हमर कुनो भी रचना व हमर रचना के कुनो भी अंशके प्रकाशित नहि कैल जाय।
नहि दरभंगा नहि मधुबनी,
जवाब देंहटाएंनहि एहि पारक नहि ओहि पारक,
बाबा जनक केर गाम के ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।
बहुत नीक लागल ।