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मंगलवार, 10 जनवरी 2012

''अक्खियाश ''

सुगंध सुमनक जेना गामेइक उठेत अछि ,
प्रेम हुनक ओहिना मन में कसैक उठेत अछि ,

बात कहबाक जे छल से कहलो न जाई,
प्रीतम अहाँ बिनु हमरा रहलो न जाई ,

अक्खिआशे अहाँ के बैसल भोर सां ,
देखयो ता कोना साँझ भये गेल ,
चिकश सनेत छलो सेहो घोर भय गेल ,

पहिलुक ओ रंग रभस बिसरल नै जैएत अछि ,
जखन इ सोची त नयन बर्बसे झुकी जायेत अछि ,

कखनो बुझाइत अछि आगम अहाँ के ,
भागी-भागी देखि मुह दर्पण में जाके ,

सजी धजी के जखन चोकैठ लग गेल छि ,
धुर जाओ की भेल इ बताश हंसी का गेल अछि ,

[रूबी झा]

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