कतेक नीक छल वो ,
हंसनाई वो खेल वो मुस्कान ,
रहेत छलहूँ एही जग सां दूर,
सबटा गम सां अनजान,
नै त कोनो दुःख छल नै छल कोनो सपना ,
भावुक नै होएत छलो के अछि आन के अपना ,
खेला में होइत छले कखनो हार,
कखनो त होइत छलय जीत ,
कखनो होइत छले झगरा झांटी,
कखनो गबेत छलो हम गीत ,
थोरबा छल लड़ाई थोरबा छल रंग ,
कतेक सुहावन छले सखी सहेली केर संग ,
वो गुड्डा गुड्रिया के कतेक नीक छल खेल ,
वो आम गाछी के अपन संगी सभ सां मेल ,
तखन कतेक करेत छलो माँ बाबु जी क हरान,
कतेक नीक छल हंसनाई आ वो मुस्कान ,
सदीखन रहेत छलो सभ गम सां अनजान .
[रूबी झा ]
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