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रविवार, 15 जनवरी 2012

कविता - कथा अमर अपन मिथिला कए



कथा अमर अपन मिथिलाकेँ 

एकरा जुनि बिसरू |
समस्त संसार मैथिलीमय हुए
आब ओ दिन सुमरु ||

बहुत पिसएलहुँ सत्ताक जाँतमे
आब जुनि पिसल जाउ |
बहुत पछुएलहुँ  पाँछा चलि कए
आबो आगु डेग बढाउ ||
निरादर किएक माएक भाषाकेँ
एकरा जुनि बिसराउ |
आबो जागू होश सम्हारु
मैथिलीकेँ  बचाउ ||

उठू सुतल शिंह  जगाबु
अपन स्वाभिमानकेँ  |
आसमानसँ  ऊँच उठाबू
अपन मिथिलाक पहचानकेँ  ||
*****
जगदानन्द झा 'मनु'

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