कथा अमर अपन मिथिलाकेँ
एकरा जुनि बिसरू |
समस्त संसार मैथिलीमय हुए
आब ओ दिन सुमरु ||
समस्त संसार मैथिलीमय हुए
आब ओ दिन सुमरु ||
बहुत पिसएलहुँ सत्ताक जाँतमे
आब जुनि पिसल जाउ |
बहुत पछुएलहुँ पाँछा चलि कए
आबो आगु डेग बढाउ ||
निरादर किएक माएक भाषाकेँ
एकरा जुनि बिसराउ |
आबो जागू होश सम्हारु
मैथिलीकेँ बचाउ ||
उठू सुतल शिंह जगाबु
अपन स्वाभिमानकेँ |
आसमानसँ ऊँच उठाबू
अपन मिथिलाक पहचानकेँ ||
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जगदानन्द झा 'मनु'
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