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सोमवार, 3 दिसंबर 2012

ई नोर किएक ? (लघुकथा)



पूष मासजाड़ अपन चरम सीमापर । लगातार पन्द्रह दिनसँ शितलहरी । गामक एकटा टूटल- फूटल खोपड़ीक असोरा । जाड़सँ बचैक हेतु असोराकेँ बाँकी दुनूकात बोड़ाक ओहाड़ । एकटा पुरान टूटल-फूटल चौकीपर पुआरक ओछैनओहिपर करीब सत्तैर बरखक बेमार असहाय कमलू  । माए-बाबू बड्ड सिनेहसँ ओकर नाम कमल रखने रहथिमुदा अभाब आ गरीबीसँ संघर्ष करैत -करैत कमलसँ कमलूमे बदैल गेल ।
गरीबी आ बुढ़ापा ओहिपर बीमारीसँ सताएल जीर्ण-शीर्ण शरीरअभाबक कारण अप्पन बएससँ दस बरखक बेसीएक लगैत । उपरसँ जाड़क एहन हाल । जाड़सँ कपैत लगातार खोंखी करैत । खाँसैत-खाँसैत कखनो बिचमे राहत भेटै छै तँ मुहसँकहु तँ करेजासँ दर्दक थकान संगे दुख मिलल आह ओकर मुहसँ निकलैत । ओहि आहसँ किन्चीत एक बेर पाथरो पिघैल जाएमुदा कमलूक आह सुनै बला ओकर दर्दकेँ बुझै बला ओहिठाम कियोक नहि । नै कियो देखभाल करै बला आ नै कियो पुछै बला । मुदा कमलूक आह आ खोंखीकेँ शाइद एहि बातक ज्ञान नहितैँ तँ ओ रुकैक नाम नहि लए रहल छलै । खोंखी आओर बेसी असहनीय आ विभत्स्यए भेलजा रहल छलै ।।
खोंखीक बेगकेँ सम्हारैमे असमर्थकमलू एकाएक अपन सम्पूर्ण बलकेँ एकठ्ठा करैत अपन दुनू हाथसँ छातीकेँ कैस कए दबाबैत बैस रहलकि तहने ओकरा पानिक तलब महसुश भेलै । आ ओकर मुहसँ अनायास निकैल परलै -"पानि -पानि "
मुदा ! अभागा कम
लू ! असहाय कमलू ! ओहिठाम ओकर बास्ते एक घूँट पानि दै बला कियोक नहि । ई  बिचार कमलूकेँ मोनमे अबैत देरी ओकर मुँहपर दर्द भरल व्यंगक एकटा मुस्की चमैक गेलैक । जेना ओ अपन वाक्यपर पचता रहल हुए । अपन दर्दकेँ ठोरपर अनि दाँतसँ कटैतलाठीक सहारा लैत चौकीक निच्चा राखाल पानिक लोटा लेबक लेल झुकल । बहुत संघर्सकेँ बाद लोटा उठाबैत जल्दी-जल्दी दू घोंट पानि अपन हलकमे उतारि लेलक । परञ्च पानि पीबैक बाद ओकरा लग एतेक बल नहि रहलै जे ओ लोटाकेँ फेरसँ नीँचा राखि सकै । लोटा ओकर हाथसँ छूति कए गुरैक गेलैक । लोटाक बचल पानि चारू कात नीच्चाँ बहि कए मानु कमलूक तकदीर आ एकाकीपर ठहाका लगाकए हँसैत होए । 
कमलु सेहो अपने खाली लोटा जकाँ चौकीपर पसैर जाइत अछि । परला बाद ओकर दहिना हाथ ओकर दुनू आँखिकेँ झैंप दै छैक । जेना अपन आँखिकेँ झाँपिक नोर नुकाबैक प्रयास कए रहल हुए । मुदा निर्लज्य नोर छैक की रुकैक केँ नामे नहि लए रहल छैक । आ ई नोर छैकओकर बुढ़ाड़ीकेँ ?
ओकर बीमारीकेँ ?
ओकर भूख-प्यासकेँ ?
नहि नहि नहि ।
तँ ई नोर किएक ?
केकरा लेल ?
ई नोर छैक ओकर मनोरथक हत्याकेँ । ई नोर छैक ओकर छिरयाइत सपनाकेँजेकरा की ओ अपन सोनीतसँ पटेने रहए । 
ओकर नोर छैक की रुकैक नाम नहि लए रहल छैक । मुदा मोन स्वप्नील दुनियाँक इन्द्रधनुषी अतीतमे हिलकोर मारै लगलै ।
जखन ओ उनैस बीस बरखक जबान सुन्नर युबक रहए । माए बड्ड मनोरथसँ ओकर ब्याह रचेने रहथिन । बाबू तँ कखन एहि दुनियाँसँ गेलखिन ओकरा मोनो नहि । बाबूक सभटा भार माए उठेलखिन । केखनो ओकरा बाबूक कमी नहि होबए देलखिन । ब्याह भेलै । घरमे एकता सुधड़ कनियाँ एलखिन । समय खुशी-खुशी बीतै लगलै । मुदा ब्याहक पाँच बर्ख बादो ओकर घर नेनाक जन्म नहि भेलै । कम
लू दुनू व्यक्तिक तँ जे हालओकर माएकेँ तँ नेनाक अभाबमे दिन काटब मुश्किल भए गेलनि । फेर शुरू भेल कोबला-पातिरक दौड़ । माँ भगवतीक मंदिरमे पातैर राखल गेल । भगवान सत्यनारायणक कथाक कोबला राखल गेल । भगवतीक इच्छासँ ओहो दिन आएल । कमलूक कनियाँ गर्भवती भेली आ नियत समयपर एकटा सुन्नर बालकक जन्म भेलै । सून घरमे बसन्तक आगमन भए गेलै । कमलु माएक तँ खुशीक मारे धरतीपर पएर नहि टिकैत छलनि । छठिहार दिन समूचा गाम माछ भात खूएल गेल । सत्यनारायण भगवानक कथा कराएल गेल । माँ भगवती घरमे पातैर देल गेल । बच्चाक नाम राखल गेलराज ! राज कमल । सम्पूर्ण वातावरण खुशीसँ गमकए लागल । जे आबए कमलूकेँ बधाइ दइत । आखिर दे किएक नहि सात बर्खक बाद जे बाप बनल रहए ।
माँ भगवतीक माया जखन नहि देबक रहनि नहि देलखिन । देबए लगलखिन तँ एककेँ बाद एकटाकमलू चारिटा पुत्रक पिता बनल । घर गृहस्थी खुशी-खुशी चलए लगलै । एहि बीच कमलूक नोकरी सेहो लागि गेलै । आर्थिक चिन्ताक समाधान सेहो भए गेलै । चारू बेटाकेँ यथासामर्थ नीकसँ शिक्षा दिएलक । समयकेँ काल चक्रमेकमलूक माए अपन जीवनक सम्पूर्ण सुख भोगि स्वर्ग चलि गेली । 
देखतए-देखतए कमलूक चारू पुत्र युवा भेल । ओकरो सभहक घर बसबक समय आबि गेल । नीक लोक-बेद देख कए चारू बेटाक ब्याह केलक । कमलुक घर पोता-पोतीसँ भरि गेल । भरल-पुरल घर देखब शाइद नीयतिकेँ मंजूर नहि । अथबा कमलूक भागमे एहिसँ आगाँक सुख भोगब नहि लिखल रहै । आथिक युग आ परिबारक बोझसँ लदलकमलूक चारू बेटा एक एक कए रोजी रोजगारक खोजमे ओकरा लगसँ दूर होति गेलै । चारू बेटा अपन-अपन परिबारक संगे शहरमे बसि गेल । रहि गेल कमलू आ ओकर संग देबैक लेल ओकर अर्धांगिनीपत्नी ओकर चारू पुत्रक माए । जेना-तेना दुनू प्राणीक जीवन चलैत रहए । परञ्च केखन तक जेना भोरक बाद साँझ होइत छैकप्रतेक शुरुआतक अन्त होइत छैकओनाहिते प्रतेक जीवनक मृत्यु । कमलूक कनियाँ सेहो जीवनसँ लडैत लडैत कमलुक संग नै दए पेली आ एक दिन कमलूकेँ छोरि स्वर्ग लोक चलि गेली । आब कमलु निदान्त असगर रहि गेल ।
आधा तँ कमलु ओहि दिन मरि गेल । बाँकी जीवन जे शेष रहै ओहिसँ निकैल कए अपन अतीतमे हरा गेल छल । मुदा नै जनि कखन ओ अपन अतीतक दुनियाँसँ नीकैल गेल रहए । अथबा कखन निकालि देल गेल रहएबिधाताक हाथसँ । नोर सुखा कए ओकर गालपर पपड़ी जैम गेल रहै । दुनू आँखि खुजल । ओहे खुजल आँखिसँ अपन अतीतकेँ निहाईर रहल छलकमलू । आओर ओहे खुजल आँखि आब शाइद केकरो बाट देख रहल छैक । शाइद अपन बेटा सभक ।
अगिला भोरेगामक किछु लोक एकटा अर्थीकेँ उठेने जा रहल छलै ।
 
"राम नाम सत्य छैसभक इहे गत छै ।"
 
"राम नाम सत्य छैसभक इहे गत छै ।"
 
रस्तामे एककात ठार एकटा शहरी युबकजेकी अर्थी देख कए रुकि गेल रहए । लग एला बाद ओहिमे सँ केकरोसँ पूछैत छै - "के छथि भाई "
ओकर उत्तरमे गामक एकटा लोक बजैत छथिजे की ओहि शहरी युबककेँ नहि चिन्हैत छथि - "छथि कतएकहियौंह छलथि । छलथि हमरे गामक एकता अभागलचारि-चारिटा बेटाक बाप रहितोअसगर । बेचारा ! अभाब एवं बेमारीसँ असगरे लडैत-लडैत मरि गेला । आब मुखाग्नीयो देबैक हेतु अप्पन कियोक नहिसभ अपने-अपनेमे व्यस्त । कमलू नाम छलनि हिनकर ।"
"कमलू"
कमलू नाम सुनैत देरी ओ शहरी युबक जोर-जोरसँ दहाड़ि मारि-मारि कए कनए लागल । ओकर कनैक कोनो पार नहि । ओकर करून रुदनमे एतेक दर्द रहै कि ओकरासँ सभकेँ सहानुभूति भए गेलै ।"किए भाई अपने किएक एतेक कानै लगलौं ।"
 
"अरे ! हम अभागल नहि कानब तँ आओर के कानत ।" ई कहैत ओ अपन जेबीसँ एकटा टेलीग्राम निकाइल कए देखेलकै जे कोनो ग्रामीण द्वारा कमलूक बेटा राजकमलकेँ कमलूक बीमारीक खबर लेल लिखल गेल रहै।
© जगदानन्द झा 'मनु'