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बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

कुमुदिनी  पर  भँभर    मंडराइए  किए
यौ पिया कहू ने  करेज   घबराइए   किए

भँभर कुमुदिनीसँ  मिलन करैत छैक
यै  सजनी अहाँक करेजा  हहाइए  किए

मोनक बगियामे  नाचैए  मोर मयूर यौ
प्रीतक  उमंगसँ  मोन   छतराइए  किए

अहाँक  रोम रोममे अछि प्रेमक तरंग
अहाँक संग हमरा एते  सोहाइए किए

प्रीतक बगियामे कुहकैए  छैक कोईली
मधुर स्वर सुनि  मोन  लहराइए  किए

मोन उपवनमे   भरल प्रीतक श्रृंगार
एलै मधुर घरी  मोन  घबराइए  किए

..........वर्ण:-१६..........

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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