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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

कविता-मखानक पात


जहिना मखानक पात नया मे काँट सँ भरल होइ छै ,
आ पुरान भेला पर कोमल भs जाइ छै ,
एकटा छोट बच्चा एक्के हाथे मसैल सकै छै .
ओहिना मनुष्यक जीवन होइ छै ,
जखन धरि जुआनी तखन धरि बड़ बलगर ,
जखने देह खसल आँखि धसल दाँत बाहर ,
बस लाति-मुक्का सँ स्वागत शुरू भ' जाइ छै ,
जुआनी मे जे पाँच-पाँच सेर दुध पिबै छल ,
आब आधा कप चाह गारिक बिस्कुट संग भेटै छै ,
जीवन भरि जे अपन कपड़ा नै खिचलक ,
पुतहु कए साड़ी चुप-चाप खिचs लागै छै ,
जकर चरणक धुल इलाका कए लोग माथ लगबै छल ,
अपन बेटा कए चरण पकड़ै लए विवश भ' जाइ छै ,
ताहि पर जै कोनो बिमारी भs जाइ ,
सोचू जौँ लकवा मारि जाइ ,
त' केहन हाल हेतै ,
सच मे मनुष्यक जीवन मखानक पात छै ,
अमित मिश्र

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