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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

गजल-२०

गुमान जिनका पर छल ओ मुँह मोरि लेलैंह
दर्दक इनाम दय, खुसी सँ नाता जोरि लेलैंह

हमर दर्द कए आब ओ समझै छथि मखोल
छन में हँसि कय, हमरा सँ नाता तोरि लेलैंह

ओ की बुझता पियार केनाई ककरा कहैत छै
जए घरी-घरी में अपन करेज जोरि लेलैंह

पियारक फूल पर चलब आब ओ की सीखता
विरह के अंगार पर चलब जे छोरि लेलैंह

'मनु' नादान, नै हुनका मिसियो भरि चिन्हलहुँ
मोनक बात की, करेजो हमर ओ फोरि लेलैंह
***जगदानंद झा 'मनु'

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