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मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

प्रजा आ तंत्र


लोहा सँ लोहा कटे अछि
विष काटै अछि विष कें,
मुदा भ्रष्ट सँ कहाँ उखड़े अछि
भ्रष्टाचारक ओइद ...?
निज स्वार्थ हेतु आश्वासन सँ
सागर में सेतु बना दै अछि,
रामक दूत स्वयं बनि सब
मर्यादा कें दर्शाबे अछि,
जनमत केर हार पहिर क ओ
रावणदरबार सजाबे अछि,
जौं करब विरोध त शंकर बनि
ओ तेसर नेत्र देखाबे अछि,
थिक प्रजातंत्र तें रावणों क
भेटल अछि समता केर अधिकार,
हमरे सबहिक शोणितपोषित
थिक प्रजातंत्रक सरकार.....

-अंजनी कुमार वर्मा "दाऊजी"

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