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बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

गजल


धूप आरती हम अनलहुँ नहि 
जप-तप करब सिखलहुँ नहि 

सदिखन कर्तव्यक बोझ उठोने
अहाँक ध्यान किछु धरलहुँ नहि 

की होइत अछि माए पुत्रक नाता
एखन तक हम बुझलहुँ नहि

हम बिसरलहुँ अहाँकेँ जननी 
अहुँ एखन तक सुनलहुँ नहि

अपन शरणमे लऽ लिअ हे माता
ममता अहाँक तँ जनलहुँ नहि

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१३ )


जगदानन्द झा 'मनु' 

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