ई मात्र विडंबना कहु वा कोनो अभिशाप, जे राजनैतिक आजादी भेटलाक ६६ वर्ख बादो हम मिथिलाबासी अपन सोचकेँ जाति-पातिसँ
ऊपर नहि उठा पाबि रहल छी |
मात्र राजनैतिक आजादी ऐ कारणे जे राजनैतिक रूपसँ हम स्वतन्त्र छी परञ्च आर्थिक
रूपसँ हम एखनो पराधीन छी | आर्थिक पराधीनता |
अर्थात हम अपन इच्छानुसार खर्च नहि कए सकै छी, मने धनक अभाब | हमरो मोन होइए अपन बच्चाकेँ कॉन्वेंट
स्कूलमे पढ़ाबी मुदा नहि पढ़ा सकै छी, ई थिक आर्थिक पराधीनता | हमर मोन होइए नीक मकानमे रही मुदा नहि किन
सकैत छी, ई थिक आर्थिक
पराधीनता | हमर मोन होइए हमरो लग
मोटर साईकिल, कार हुए, हमरो कनियाँ-बच्चा नीक कपड़ा पहिरथि मुदा नहि,
ई थिक
आर्थिक पराधीनता |
स्वाधीनता कए ६६ वर्ख बादो आर्थिक पराधीनता किएक ?
की हमरा लग बिद्या कम अछि ?
की हम कोनो राजनेता नहि बनेलहुँ ?
की हम प्राकृतिक रूपेण उपेक्षित छी ?
उपरोक्त सभ बात गलती अछि | विद्यामे हम केकरोसँ कम नहि छी | राजनीतीकेँ
खेती अपने खेतमे होइए | प्राकृतिक कृपा
अपन धरती पर पूर्ण रूपेण अछि |
तखन किएक ? किएक हम
स्वाधीनता कए ६६ वर्ख बादो, आर्थिक पराधीनताक जीवन जिबैक लेल बेबस छी |
एखनो बच्चाकेँ चोकलेट नहि आनि हम कहैत
छीयै, दाँत खराप भए जेतौ | कमी चोकलेटमे नहि, कमी हमर जेबीमे
अछि |
आ ई आर्थिक पराधीनताक एक मात्र कारन
अछि, हम मिथिला बासिक सोचब
तरीका | आजुक युगमे जहिखन मनुख
चान-तारा पर अपन पएर राखि चूकल अछि,
हम मिथिलाबासी एखन धरि जाति-पातिकेँ
सोचिसँ ऊपर उठै हेतु तैयार नहि छी |
बाभन-सोलकन्हकेँ नामपर बिबाद |
अगरा-पिछराकेँ
नामपर बिबाद | ऊँच-नीचकेँ नामपर बिबाद |
कोनो काजकेँ लए कऽ
आगू बढ़ू, जेकरा नापशन्द भेल, जाति-पातिकेँ नामपर बखेड़ा ठार
कए दएत | आ ई कोनो अशिक्षित
नहि बहुत पढ़ल-लिखल वर्गोंसँ नहि दूर भए
रहल अछि | शिक्षित
माननीयव्यक्ति सभ चाहे कोनो जातिक हुअए,
अपन-अपन जाति कए झंडा लए कऽ आगू
आबि जाइत छथि |
यदि हम स्वयं व अपन मिथिला समाजकेँ
विकसित व विकासशील देखए चाहै छी तँ
जाति-पातिक झंझटसँ निकलि कए एक जुट
भए आगू बढ़य परत |
एक संगे चलैमे मतभेद स्वभाबिक छै आ ओकरा दूर केनाइ निदान्त आबश्यक छै | मुदा ओहि मतभेदमे
जातिकेँ बिचमे नहि आनि कए व्यक्तिगत आलोचना, समालोचना करबा चाही
|
की कोनो गोट सफल व्यक्तिकेँ ओकर जातिक
नामसँ जानल जाइ छैक ?
नै, तँ
सफलताक सीढ़ीपर चलै लेल जाति-पातिक सहारा किएक |
ई जाति-पातिक रस्ता किछु मुठी भरि राजनेताक चालि छन्हि | हुनकर बात मानी तँ हम सभ
अपन विकास छोरि जाति-पातिमे लड़ैत
रहि आ ओ दुस्त राज करैत हमरा सभकेँ
सोधैत रहत |
आलेख - जगदानन्द झा 'मनु'
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