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बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

मिथिलामे जाति-पाति



एकरा मात्र विडंबना कहूँ की कोनो अभिशाप, जे राजनैतिक आजादी भेटलाक सात दसक बादो हम मिथिलावासी अपन सोचकेँ जाति-पातिसँ ऊपर नहि  लय जा सकलहुँ। 
मात्र राजनैतिक आजादी ऐ कारणे जे राजनैतिक रूपसँ हम स्वतन्त्र छी परञ्च आर्थिक रूपसँ हम एखनो पराधीन छी। आर्थिक पराधीनता  अर्थात हम अपन इच्छानुसार खर्च नहि कय  सकै छी, मने धनक अभाब। हमरो मोन होइये जे अपन बच्चाकेँ  नीक प्राइवेट स्कूलमे पढ़ाबी मुदा नहि पढ़ा सकै छी,   थिक आर्थिक पराधीनता। हमर मोन होइये नीक मकानमे रही मुदा नहि किन सकैत  छी,   थिक आर्थिक पराधीनता। हमर मोन होइये हमरो लग चारि चक्का गाड़ी हुए, हमरो कनियाँ-बच्चा नीक कपड़ा पहिरथि मुदा नहि,   थिक आर्थिक पराधीनता।
स्वाधीनताक सात दसक  बादो आर्थिक पराधीनता किएक ?
की हमरा लग बिद्या कम अछि ?
की हम कोनो राजनेता नहि बनेलहुँ ?
की हम प्राकृतिक रूपे उपेक्षित छी ?
उपरोक्त सभ प्रश्नक उत्तर नहिमे अछि। विद्यामे हम केकरोसँ कम नहि छी। राजनीतीकेँ  खेती अपने खेतमे होइए। प्राकृतिक कृपा अपन धरती पर पूर्ण रूपेण अछि।
तखन किएक ? किएक हम स्वाधीनता केर स्वर्ण वर्षक बादो, आर्थिक पराधीनताक जीवन जिबैक लेल बेबस छी।
एखनो बच्चाकेँ  चोकलेट नहि आनि हम कहैत छीयै, दाँत खराप भय जेतौ। कमी चोकलेटमे नहि, कमी हमर जेबीमे अछि।
आ ई  आर्थिक पराधीनताक एक मात्र कारण अछि, हम मिथिला वासीक सोचब तरीका। आजुक युगमे जहिखन मनुख चान-तारा पर अपन पएर  राखि चूकल अछि, हम मिथिलाबासी एखन धरि  जाति-पातिकेँ  सोचिसँ ऊपर उठै हेतु तैयार नहि छी।
बाभन-सोलकन्हकेँ  नामपर बिबाद। अगरा-पिछराकेँ  नामपर बिबाद। ऊँच-नीचकेँ  नामपर बिबाद ।
कोनो काजकेँ  लय कऽ  आगू  बढ़ू, ओ काज चाहे समाजिक हो सांस्कृतिक हो बा राजनीतिक जेकरा नापसन्द भेल, जाति-पातिकेँ  नामपर बखेड़ा  ठार कय  देत। आ ई  कोनो अशिक्षित नहि बहुत पढ़ल-लिखल वर्गोंसँ नहि दूर भए  रहल अछि। शिक्षित माननीयव्यक्ति सभ  चाहे कोनो जातिक हुअए, अपन-अपन जातिगत झंडा लय  कऽ आगू  आबि जाइत छथि। सभ जातिके नेता वा ठीकेदार सभ हमरा सभ के जाति पातिमे ओझरा क अपने हज़ारों करोड़ के मालिक बनि गेल आ हम सभ अपनाने कपरफोड़ीमे लागल रहै छी। 
यदि हम स्वयं व अपन मिथिला समाजकेँ  विकसित व विकासशील देखय चाहै छी तँ  जाति-पातिक झंझटसँ निकलि एक जुट भय आगू  बढ़य परत।
एक संगे चलैमे मतभेद स्वभाबिक छै आ ओकरा दूर केनाइ  निदान्त आबश्यक छै मुदा ओहि  मतभेदमे जातिकेँ  बिचमे नहि आनि कय व्यक्तिगत आलोचना, समालोचना करबा चाही।
की कोनो गोट सफल व्यक्तिकेँ  ओकर जातिक नामसँ जानल जाइ  छैक  ?  नहि ने तँ  सफलताक सीढ़ीपर चलै लेल जाति-पातिक सहारा किएक ?
ई जाति-पातिक रस्ता किछु मुठी भरि राजनेताक चालि छन्हि। हुनकर बात मानी  तँ  हम सभ  अपन विकास छोरि जाति-पातिमे लड़ैत  रहि आ ओ दुस्त राज करैत हमरा सभकेँ  सोधैत रहत।

आलेख - जगदानन्द झा 'मनु'

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