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रविवार, 26 फ़रवरी 2012

गजल

टूटल करेज राखब नहि हम एखन सिखने छी 
किछु अपने तोरलहुँ  किछु भागे एहन  रखने छी  


जिनका लुटेलहुँ हम अपन स्नेह भरल करेज 
हुनका सँ दूर होबाक, माहुर अपने सँ चीखने छी 


सोचने त ' छलहुँ एक दिन जीवन में होयत रंग 
ओहि रंग भरल दुनियाँ सँ कतेक दूर एखने छी 


दोसर सँ करू की शिकाति जँ अपने नहि बुझलक
जिनका केलौं नेह करेज तोरैत हुनका देखने छी 


(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२०)
जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल संख्या-२२ 

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