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बुधवार, 30 जनवरी 2013

गजल


एखनो कोना कऽ छी नै जनेलहुँ हम
छोरि मनकेँ आन नै धन कमेलहुँ हम

सभक आनै लेल मुँहपर हँसी चललहुँ
अपनकेँ नै जानि कतए हरेलहुँ हम   

हृदय खोखरलक हमर जे दुनू हाथसँ
ओकरो हँसि हँसि कऽ अप्पन बनेलहुँ हम

फूल सगरो छोरि काँटे किए बिछ्लहुँ
ई करेजा जानि कोना लगेलहुँ हम

‘मनु’ करेजा तोरि एना अहाँ जुनि हँसु
मग्न भय कहि गजल ताड़ी चढ़ेलहुँ हम

(बहरे कलीब, मात्रा क्रम-२१२२-२१२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’   

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