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मंगलवार, 29 जनवरी 2013

गजल


साहीक कांट घटैत गेलै रुप सोहागक बरहैत गेलै
तेल आ बाती सठैत गेलै भूख प्रकाशक बरहैत गेलै

लूट काट दंगा फसादसँ समाज एतोँऽ बनल कुलषित
लोक जतै कटैत गेलै समाज सुधारक बरहैत गेलै

धर्मक व्यापार करै लोक एतोँऽ ठगै निज भेष बदलि कऽ
लोकक आस्था घटैत गेलै काज पंडितक बरहैत गेलै

छैन मातृभूमिक नै कोनो चिँता धन लेल ई नेता बनथि
आ मुद्रास्थिति खसैत गेलै गरीबी देशक बरहैत गेलै

लोक एतोँऽ अछि बनल हत्यारा बेटी जानि भूर्ण हत्या करै
स्त्रीक संख्या घटैत गेलै आ राशि दहेजक बरहैत गेलै

देखि सिनेमा बढ़ल फैसन देखूँ मिथिला यूरोप बनल
संस्कार कियै घटैत गेलै नग्नता देहक बरहैत गेलै

सरल वार्णिक बहर, वर्ण 22
© बाल मुकुन्द पाठक ।।

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