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सोमवार, 24 जून 2013

गजल

गजल

जहियासँ अपन घर नाहि अछि
तहियासँ केकरो डर नाहि अछि

मोनक बात केकरा कहब आब
ऐहि ठाम कियौ हमर नाहि अछि

वियोगे हमतऽ कलपौँ असगर
अहाँ पर कोनो असर नाहि अछि

सास-पूतोहमे कलह मचल छै
बाँकी ऐहिसँ कोनो घर नाहि अछि

माँग बढ़ल दहेजक चहुँ दिस
आदर्श वियाहक वर नाहि अछि

सभ ठाम दंगा पसरल 'मुकुन्द'
शीश सहित कोनो धड़ नाहि अछि

सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
© बाल मुकुन्द पाठक ।।

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