दस बर्खक नेना अक्षत अपन माएसँ, “माए माँछ
बनेलहुँ मुदा बड़का बाबूकेँ तँ खाए लेल कहबे नहि केलियन्हि |”
माए, “रहअ दहि, तोहर बड़की माएकेँ एनाहिते बड़काटा
ब्याम छनि | ओ अपना घरमे पिआउज, लहसुन, माँछ-माँसु नहि बनेता आ हम अपना घरमे बनाबी
तँ तोहर बड़का बाबूकेँ खुआबू |”
अक्षत, “मुदा माए जँ बड़का बाबू बूझि गेलखिन्ह कि
अक्षतक घरमे माँछ बनलै आ हुनका खाए लेल नहि कियो कहलकनि तहन ?”
माए टपाकसँ, “तहन की हमरा कोनो केकरो डर नहि
लगैए |”
अक्षत, “ई गप्प नहि छै माए....(कनिक काल चुप्प,
आगू ) जखन हम कमाए लागब तँ सभ दिन माँछ-माँसु बना बड़का बाबूकेँ खुएब.. |”
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जगदानन्द झा ‘मनु’
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