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रविवार, 2 जून 2013

गजल



हम जँ पीलहुँ शराबी कहलक माना
टीस नै दुख करेजक बुझलक माना

भटकलहुँ बड्ड   भेटेए नेह  मोनक
देख मुँह नै करेजक सुनलक माना

लिखल कोना कहब की की अछि कपारक
छल तँ बहुतो मुदा सभ छिनलक माना

दोख नै हमर नै ककरो आर कहियौ
देख हारैत हमरा   हँसलक माना

दर्द जे भेटलै      बूझब नै कनी 'मनु'
आन अनकर कखन दुख जनलक माना

(बहरे असम, मात्रा क्रम : २१२२-१२२२-२१२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’  

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