मैथिलीपुत्र ब्लॉग पर अपनेक स्वागत अछि। मैथिलीपुत्र ब्लॉग मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित अछि। अपन कोनो तरहक रचना / सुझाव jagdanandjha@gmail.com पर पठा सकैत छी। कृपया एहि ब्लॉगकेँ subscribe/ फ़ॉलो करब नहि बिसरब, जाहिसँ नव पोस्ट होएबाक जानकारी अपने लोकनिकेँ भेटैत रहत।

सोमवार, 17 जून 2013

पिआस




“की यौ ललनजी एना टुकुर टुकुर की तकै छी ?”
अप्पन गामक मुँहलागल भाउजक मुँहसँ ई सुनि ललन एकदमसँ सकपका गेला, जिनका कि बहुत कालसँ घुरि रहल छल ।
“नहि किछु नहि ।“
“धूर जाऊ ! इनार लग पिआसल जाइ छै की पिआसल लग इनार । अहाँ एहन पहिल मरद  छी जकरा लग इनार चलि कए एलैए आ एना टुकुर टुकुर तकने कोनो पिआस मिझाइ छैक की ? पिआस मिझाबैक लेल इनारमे कूदए परैक छै ।“

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें