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सोमवार, 17 जून 2013

पिआस




“की यौ ललनजी एना टुकुर टुकुर की तकै छी ?”
अप्पन गामक मुँहलागल भाउजक मुँहसँ ई सुनि ललन एकदमसँ सकपका गेला, जिनका कि बहुत कालसँ घुरि रहल छल ।
“नहि किछु नहि ।“
“धूर जाऊ ! इनार लग पिआसल जाइ छै की पिआसल लग इनार । अहाँ एहन पहिल मरद  छी जकरा लग इनार चलि कए एलैए आ एना टुकुर टुकुर तकने कोनो पिआस मिझाइ छैक की ? पिआस मिझाबैक लेल इनारमे कूदए परैक छै ।“

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