“यौ गृहथ बचियाक दुरागमन छैक दू हजार रुपैया पैंच
दिअ अगहनक कटनीपर आपस कऽ देब ।”
“हाँ खगता उत्तर मधुरगर मधुरगर बोल आ काज निकैल
गेलापर गृहथ दुश्मन । परसु रमेशराकेँ कहलिऐ कनी दू दिनक बोइनिपर रहि जो, बारी झारी
साफ करैक अछि तँ मुँह बना कऽ कहलक, मालिकक ओहिठाम काज कए रहल छी आ एखन मालिक कतए
चलि गेला ।”
“बीतल बर्ख एहि बचियाक ब्याहपर मालिक दस हजार
रुपैयाक मदद केने रहथिन, बिना आपसिक । आब अहीँ कहियौ, हुनकर बोइनि छोरि कऽ कतौ दोसरठाम
काज कोना करतै, बोइनि तँ कतौ करहेक छै, तँ हुनकर ओहिठाम किएक नहि । एतबो आँखिमे
पानि नहि रखबै तँ मुइला बाद उपर बलाकेँ की मुँह देखेबै ।”
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