प्रस्तुत अछि, दीप नारायण'विद्यार्थी' जीकँ गजल
आब कथी राखल अछि पिआर मे
लोक फुसिए बौआइए बोखार मे
हमरा तँ खरबो मे नहि भेटल
आहाँक मुदा भेटगेल हजार मे
'फुसियांहू साय लेल निन्न कामय
कतेक मुर्ख छथि लोक संसार मे
साँच कहब तँ ओल जका लागत
तैं किया किछु कहब बेकार मे
एहि दुनियाँ सँ कुन आश 'दीपक'
चलु चलै छी माय के दरबार मे
वर्ण~~१३
दीप नारायण'विद्यार्थी'
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